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देहरादून: उत्तराखंड के रिजर्व फॉरेस्ट में बाघों की सुरक्षा पर संकट मंडरा रहा है। बाघों के संरक्षण के लिए सेव टाइगर प्रोजेक्ट के अंतर्गत वन विभाग बाघों की सुरक्षा को लेकर कई दावे करता है। लेकिन, उनकी मौत को लेकर आई रिपोर्ट से हंगामा मच गया है। वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक समीर सिन्हा ने बताया कि जनवरी से लेकर अब तक 12 बाघों की मौत हुई है। इसको लेकर समीर सिन्हा ने एक समिति भी बनाई है। बाघों की मौत शिकारियों के कारण नहीं हुई है।
हालांकि, मौत का कारण जानने का प्रयास किया जा रहा है। आगे समीर सिन्हा ने बताया कि वर्ष 2018 में हुए सर्वेक्षण में उत्तराखंड में 442 बाघों की गिनती हुई थी। यह अपने आप में एक कामयाबी है। दूसरी ओर अभी हाल ही में शिवालिक रेंज में बाघों का आंकड़ा डेढ़ सौ से अधिक पाया गया है। हाल ही में रामनगर कॉर्बेट नेशनल पार्क में अभी एक फंदेनुमा चीज से एक बाघिन चोटिल हो गई थी। उसके बारे में सिन्हा ने बताया कि 2 वर्ष पहले किसी के शिकंजे में आने के कारण बाघिन फंस गई थी। इसमें किसी शिकारी के षड्यंत्र का खंडन करते हुए उन्होंने कहा कि हम बाघिन के उपचार के लिए वेटरनरी सर्जन से निरंतर संपर्क में हैं।
वहीं, कोटद्वार के कॉर्बेट नेशनल पार्क क्षेत्र में कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर एक और बाघिन की मौत की फोटो वायरल हुई थी। उसमें बताया गया था कि बाघिन भूख से मर गई है। इस खबर का खंडन करते हुए समीर सिन्हा ने बताया कि बाघिन बूढ़ी हो गई थी। शिकार न कर पाने के कारण उसकी मौत हुई थी। उन्होंने कहा- इस प्रकार की घटना आम बात है। सिन्हा ने आगे कहा कि शिकारियों से बाघ पूरी तरह सुरक्षित हैं। हमने ट्रैकिंग कैमरे लगाए हैं। ड्रोन एवं सैटेलाइट इमेज के जरिए रिजर्व फॉरेस्ट की सुरक्षा की जाती है। अभी तक बाघों की मौत की वजह सामने नहीं आई है। निरंतर इस बात पर संशय बना हुआ है कि आखिर आयु के कारण इन बाघों की मौत हुई या फिर किसी बीमारी से। इन सवालों का जवाब तभी मिलेगा, जब इस पूरे मामले में जांच रिपोर्ट सामने आएगी।