CM नीतीश की विपक्षी एकता की प्लानिंग हो गई ‘Decode’, इस तरह टूट सकता है PM बनने का सपना

CM Nitish's opposition unity planning has been 'decoded', in this way the dream of becoming PM can be broken
CM Nitish's opposition unity planning has been 'decoded', in this way the dream of becoming PM can be broken
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पटना : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इससे पहले भी महागठबंधन के साथ गए हैं। लेकिन इस बार मामला कुछ अलग सा दिख रहा है। बिहार की राजनीति को समझने वाले बताते हैं कि इस बार नीतीश कुमार ज्यादा ही लालू परिवार की ओर झुके हुए हैं। दिल्ली जाने से पहले लालू से मुलाकात। दिल्ली में लालू का साथ। बिहार में तेजस्वी यादव की लगातार तारीफ। जानकार कहते हैं कि नीतीश पहले ऐसे नहीं थे। नीतीश अपनी शर्तों पर चलते थे। अब ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार अपनी सभी सियासी सलाह लालू यादव और लालू परिवार से लेते हैं। जानकारों की मानें, जब नीतीश कुमार दिल्ली में विपक्षी नेताओं से मिलने जा रहे थे। उससे पहले लालू से सलाह मशविरा किया। सोनिया से मुलाकात के पहले तो बकायदा वो लालू को साथ लेकर गए।

कांग्रेस ने नहीं दिया भाव
बिहार की सियासत को जानने वाले कहते हैं कि जिस तरह सोनिया गांधी ने नीतीश और लालू की मुलाकात को ठंडे तरीके से हैंडल किया। उसके बाद दोनों नेता राजनीतिक रूप से सुस्त हो गए। नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की प्लानिंग को सबसे पहले सोनिया गांधी ने पलीता लगाया। सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्टी में होने वाले अध्यक्ष पद के चुनाव में व्यस्तता बताते हुए नीतीश और लालू यादव को टाल दिया। मुलाकात सफल नहीं रही। उसके बाद से नीतीश बिहार लौटे और भूलकर भी उनके मुंह से विपक्षी एकता की बात अब तक नहीं निकली है।

‘अपना-अपना राग’
हां, कुछ दिनों बाद नीतीश कुमार विपक्षियों की एक रैली में हरियाणा पहुंचे। जहां उन्होंने रैली को संबोधित किया। संबोधन भी पूरी तरह औपचारिकता वाला रहा। नीतीश ने कोई बड़ी बात नहीं कही। इस रैली से ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल ने दूरी बना ली। जानकार मानते हैं कि क्षेत्रीय क्षत्रपों के अंदर यानी सबके अंदर विपक्ष का सिरमौर बनने की चाहत हैं। नीतीश कुमार उसमें अकेले नहीं हैं। बिहार की राजनीति को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त कहते हैं कि देखिए नीतीश कुमार ने हमेशा बिहार की सियासत की। दिल्ली में वे अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता के सानिध्य में रहे। लेकिन उसके बाद हमेशा बिहार रहे। उन्हें बिहार रहते हुए पता नहीं था कि देश के सियासी माहौल में विपक्ष और क्षेत्रीय दल के नेता भले उनके फैसले की तारीफ करें, लेकिन जब भी प्रमुख बनने की बात आएगी, तो कई चेहरे सामने आ जाएंगे।

‘अपनी-अपनी डफली’
इससे पूर्व तेलंगाना सीएम केसीआर पटना पहुंचे थे। सीएम नीतीश को पीएम बनाने के प्रश्न पर केसीआर गोलमोल जवाब देते दिखे। उनके जवाब से ऐसा लगा कि वो खुद विपक्षी दलों के सिरमौर के तौर पर अपने को देख रहे हैं। नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की प्लानिंग को फेल करने में कांग्रेस ने बड़ी भूमिका निभाई। जब नीतीश इसकी तैयारी कर रहे थे। उसी वक्त कांग्रेस में भारत जोड़ो यात्रा के लिए मंथन चल रहा था। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू कर दी। जिस तरह से यात्रा का रिस्पांस मिल रहा है। उससे साफ लगता है कि कांग्रेस पार्टी का मनोबल बढ़ा हुआ है। जानकार कहते हैं कि ये मानकर चलिए कि राहुल गांधी की यात्रा ने नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा को मारने का काम किया है। अब किसी हाल में कांग्रेस विपक्षी एकता के दौरान भी किसी दूसरे चेहरे को बर्दाश्त नहीं करेगी।

‘कांग्रेस ने काटा रास्ता’
कांग्रेस के नये अध्यक्ष बने मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस ने पहले ही बड़े पार्टी कार्यों से लाद दिया है। वे हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव में कांग्रेस की सफलता पर ध्यान दे रहे हैं। वैसे भी खड़गे बिहार दौरे के दौरान नीतीश कुमार की ओर से विपक्ष का नेतृत्व करने वाले सवाल पर चुप्पी साध गए थे। उसी समय ये कयास लगाया जा रहा था कि नीतीश कुमार को लेकर कांग्रेस कंफर्टेबल नहीं है। कभी ऐसा भी था कि नीतीश कुमार कांग्रेस के काफी करीबी थे। बीच में दूरी बढ़ गई और लालू परिवार कांग्रेस का करीबी हो गया। यहां तक कि सोनिया से मिलने जाने के लिए नीतीश कुमार को लालू यादव को साथ लेना पड़ा। कुल मिलाकर बिना कांग्रेस के विपक्षी एकता संभव नहीं। दूसरी ओर यदि बैगर कांग्रेस कोई फ्रंट बनता है, तो उसके दावेदार इतने हैं कि नीतीश कुमार खुद ही अलग हट जाना पसंद करेंगे।

विश्वसनीयता का संकट
जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार की विश्वसनीयता सियासी कालखंड में हमेशा दरकती रही है। राजनीति में खुद को सेक्यूलर श्रेणी का बड़ा झंडाबरदार मानने वाले नीतीश कुमार जब बीजेपी के साथ गये, तब अन्य दलों ने उनके इस कदम को सही नहीं माना। नीतीश ने उन पर ध्यान नहीं दिया। पीएम मोदी और बीजेपी के फैसले की सराहना करते रहे। उसके बाद वे कई मुद्दों पर बिहार बीजेपी नेताओं से नाराज दिखे और पाला बदल लिया। जानकार कहते हैं कि पाला बदलने के बाद भी वो लालू यादव के पास गए। इस दौरान उनकी विश्वसनीयता को धक्का लगा। क्योंकि, पूरी दुनिया जानती है कि नीतीश कुमार ने जंगलराज का राग अलापकर बिहार में सुशासन बाबू के रूप में स्थापित हुए। एक बार फिर वो महागठबंधन के साथ हैं। जानकारों की मानें, तो उनका लगातार इधर से उधर होना भी विपक्षी दलों को नहीं पच रहा है। वैसे में विपक्षी दलों का सिरमौर वहीं होगा, जो शुरुआत से बीजेपी के विरोध में खड़ा रहा हो।