Ek Villain Returns Review: नए रास्ते पर जाने से अच्छा है, घूम आएं पुरानी गलियों में

Ek Villain Returns Review: It is better to go on a new path, roam the old streets
Ek Villain Returns Review: It is better to go on a new path, roam the old streets
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Arjun Kapoor And Tara Sutariya Film 2022: आठ साल में दुनिया में बहुत कुछ बदल चुका है. हिंदी सिनेमा में भी कहानी कहने का अंदाज और नीचे आया है. आठ साल बाद वापसी करने वाला एक विलेन इस बात का गवाह है. रितेश देशमुख, सिद्धार्थ मल्होत्र और श्रद्धा कपूर की एक विलेन (2014) इस वापस लौटे विलेन से कहीं बेहतर थी. कहानी, एक्टिंग, थ्रिल और संगीत के लिहाज से. जबकि एक विलेन रिटर्न्स उसके आगे फीकी है. हर लिहाज से. कहानी की तो यहां समस्या है ही, इसेस ज्यादा यह लगता है कि चारों एक्टरों के बीच एक्टिंग में दूसरे से कमतर साबित होने की होड़ लगी है. अर्जुन कपूर के साथ फिल्म-दर-फिल्म लुक की समस्या बढ़ती जा रही है. वे ज्यादा से ज्यादा खराब कपड़े पहन रहे हैं और हर सीन में लगता है कि बस, सोकर उठे और कैमरे के सामने चले आए. कायदे से वह इस फिल्म में न तो हीरो हैं और न विलेन.

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समस्या एक्टरों की
जॉन अब्राहम भी इधर कुछ फिल्मों से अपनी हर अगली फिल्म में पिछली फिल्म की खराब एक्टिंग का रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं. एक विलेन रिटर्न्स में उन्हें देख कर दुख होता है. चेहरे पर हर हाल में एक-सा भाव. आशिक वह किसी एंगल से नहीं लगते और विलेनगिरी उन्हें जमती नहीं. उस पर साइकोलॉजिकल थ्रिलर जैसा विषय उनके लिए एक्टिंग का पहाड़ चढ़ने से कम साबित नहीं होता. तारा सुतारिया के खाते में अच्छी बात इतनी है कि वह अपनी पिछली फिल्मों से कुछ बेहतर दिखी हैं. लेकिन काम में दम नहीं है. जबकि आप कल्पना कर लीजिए कि दिशा पाटनी किसी मॉल के स्टोर में कपड़े बेचती कैसी देखेंगी. असल में यह काम भी उनके बस का नहीं. फिर इस फिल्म की रिलीज से पहले उनके जिस ग्लैमर की चर्चा थी, वह यहां नहीं मिलता. मतलब पैसा बेकार गया.
कभी आगे कभी पीछे कहानी
फिल्म में कहानी के नाम पर जोड़-तोड़ है. एंटरटेनमेंट नहीं. गौतम (अर्जुन कपूर) रईस बिजनेस मैन का बिगड़ैल बेटा है. उसे स्ट्रलिंग सिंगर आरवी (तारा सुतारिया) से प्यार हो जाता है. उधर, भैरव (जॉन अब्राहम) एक कैब ड्राइवर है. उसे अपनी एक सवारी रसिका (दिशा पाटनी) से प्यार हो गया. इसके बीच शहर में दर्जन भर से ज्यादा लड़कियों के कत्ल हो चुके हैं. फिल्म का ओपनिंग सीन ही आरवी पर होटल रूम में हुए अटैक का है. मुस्कराते हुए मास्क वाले किलर ने हमला किया है. इसके बाद कहानी छह महीने पीछे जाती है, फिर वर्तमान में लौट आती है. थोड़ी देर बाद फिर तीन महीने पीछे जाती है, फिर वर्तमान में लौट आती है.

कुछ भी साफ नहीं
कहानी के कभी आगे, कभी पीछे से कनफ्यूजन पैदा होता है. असल में राइटर के पास कुछ होता ही नहीं कि ढंग से बता पाए. एक्टरों के किरदारों में भी कोई दम नहीं दिखता. उनका कोई ग्राफ नहीं है. जगह-जगह मार-पीट करने वाले गौतम को रईस बाप आधी संपत्ति देकर पीछा छुड़ा लेता है और आरवी गौतम को बताती है कि उसका बाप एक मशहूर क्लासिकल सिंगर है, मगर उसकी मां से उसने शादी नहीं की थी. गौतम इसे सोशल मीडिया और मीडिया में वायरल कर देता है. खबर चल पड़ती है. इन दोनों के बाप की बातों का फिल्म की कहानी से कोई कनेक्ट नहीं बनता. यह बातें नहीं भी दिखाई जाती तो कोई फर्क नहीं पड़ता. जबकि जो दिखाना चाहिए, वह राइटर डायरेक्टर नहीं दिखाते. भैरव के आगे-पीछे क्या है. कौन है, कहां से आया. जैसा है, वैसा क्यों है. इसी तरह जब रसिका न उससे प्यार करती है और न दोस्त है, लेकिन उससे गिफ्ट और मदद दोनों क्यों लेती रहती है. वह लालची है तो क्या सबके साथ ऐसा ही करती है. उसकी जिंदगी का क्या मकसद है. उसे कोई परेशानी है या वह मूर्ख है. कुछ साफ नहीं होता.