नई दिल्ली। तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को पूरी तरह से वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली-एनसीआर के चारों बार्डर (सिंघु, टीकरी, शाहजहांपुर और गाजीपुर) पर जारी किसानों का प्रदर्शन बिल्कुल नीरस पड़ चुका है। आंदोलन की शुरुआत कर हीरो बनन के चक्कर में कुछ इस तरह की हरकतें होती रहीं कि किसान नेता हीरो के बजाय विलेन बनते गए। वहीं, खासकर 3 अक्टूबर से सिंघु, टीकरी, शाहजहांपुर और गाजीपुर बार्डर पर प्रदर्शन कर रहे तमाम दिग्गज किसान नेता लखीपुरखीरी (उत्तर प्रदेश) की ओर कूच कर गए हैं या फिर कूच करने वाले हैं। दरअसल, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में 3 अक्टूबर को हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन का मिजाज ही पूरी तरह से बदल गया है। स्थिति यह है कि तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों की वापसी की चर्चा ही नहीं हो रही, बल्कि मुद्दा अब लखीमपुर खीरी हिंसा हो गया है। वहीं, सच बात तो यह है कि किसान आंदोलन से 10 महीने बाद भी किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ है, लेकिन दिल्ली-एनसीआर के लाखों लोगों की जिंदगी नर्क बन गई है। सैकड़ों लोगों की नौकरी गई तो कई का तो कारोबार खत्म हो गया। रोजाना हजारों लोगों को कई किलोमीटर चल रहा अपना समय और पैसा दोनों जाया करना पड़ रहा है।
प्रदर्शनकारियों से अधिक हो गई टेंट की संख्या
वहीं, दिल्ली-हरियाणा और दिल्ली-यूपी बार्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों की संख्या हजारों से सिमटकर सैकड़ों में आ गई है। टीकरी, सिंघू, शाहजहांपुर और यूपी बार्डर पर तो कभी-कभी प्रदर्शनकारी किसानों की संख्या 100 से भी कम हो जाती है, जबकि टेंटों की संख्या 500 के आसपास है। कुलमिलाकर संयुक्त किसान मोर्चा भी लगता है कि उनका आंदोलन अब प्रतीकात्मक हो चुका है। कुलमिलाकर इसका कोई निष्कर्ष निकले या फिर न निकले, लेकिन सिंघु, टीकरी, शाहजहां और गाजीपुर बार्डर पर प्रतीकात्मक प्रदर्शन चलता रहे।
यूपी गेट पर भी फीका पड़ता जा रहा प्रदर्शन
उधर, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत की अगुवाई वाले यूपी गेट (गाजीपुर सीमा) की बात करें तो यहां पर फिलहाल बुरा हाल है। किसानों से अधिक टेंट हो गए हैं। किसान प्रदर्शनकारियों की संख्या 200 से अधिक तब होती है, जब राकेश टिकैत यहां पर आते हैं। ऐसा महीने में एकाध बार ही हो पाता है।
रास्ता रोक कर बैठे किसानों ने बढ़ाई लोगों की परेशानी
बता दें कि यूपी गेट पर भी तीनों कृषि कानूनों के विरोध में 28 नवंबर से प्रदर्शन चल रहा है। प्रदर्शनकारियों ने यहां राष्ट्रीय राजमार्ग-नौ, दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे और संपर्क मार्ग पर तंबू गाड़ कर कब्जा किया है। तंबुओं के किनारे ईंट-सीमेंट से करीब एक-डेढ़ फीट ऊंची दीवार बना दी है। पानी की टंकियां लगा दी हैं। यूपी गेट से करीब एक किलोमीटर पहले अपना खुद का चेकपोस्ट बना दिया है। इस तरह से प्रदर्शनकारियों ने पूरी तरह से रास्ता बंद कर रखा है। कोई पैदल भी दिल्ली नहीं जा पाता है।
आंकड़े एक नजर में
लंगर – 27
बड़े टेंट – 25
मझले टेंट – 80
छोटे टेंट – 125
रोजान प्रभावित होने वाले वाहनों की संख्या
बाहरी वाहन – 1.10 लाख
स्थानीय वाहन – 90 हजार
ईंधन की बर्बादी – तीन लाख लीटर
टीकरी बार्डर भी पड़ा सूना
उधर, दिल्ली-हरियाणा के एक अन्य बार्डर यानी टीकरी बार्डर पर तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन तो चल रहा है, लेकिन सिर्फ कहने भर के लिए। टीकरी बार्डर पर आंदोलन में अब पंजाब से भी आवाजाही कम हो रही है। इसका असर भी दिखाई दे रहा है। किसान इन दिनों धान की फसलों का कार्य निपटाने में जुटे हैं। ऐसे में किसान यहां पर आने के लिए तैयार नहीं हैं। आलम यह है कि लंगर के साथ तंबू भी बहुत कम हो गए हैं।
सिंघु बार्डर पर भी रौनक गायब
सिंघु बार्डर पर फिलहाल किसान नदारद हैं। दूर तक टेंट ही टेंट नजर आते हैं, जिनमें किसान कम ही रहते हैं। यहां पर जहां कई लंगर चलते थे, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है। फिलहाल यहां पर किसी तंबू में अगर लंगर चल भी रहा है तो सिर्फ आसपास में ठहरे आंदोलनकारियों के लिए ही है।
सुप्रीम कोर्ट ने उठाए किसानों के आंदोलन पर सवाल
तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों द्वारा विरोध प्रदर्शन जारी रखने पर सुप्रीम कोर्ट भी सवाल उठा चुका है। किसान महापंचायत से सवाल भी किया कि जब मामला विचाराधीन है तो विरोध प्रदर्शन क्यों? कानूनों पर रोक लगी हुई है और कानून लागू नहीं हैं तो फिर विरोध प्रदर्शन किसलिए? क्या आप सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं? इसके साथ ही जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली एक अन्य पीठ ने कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे विरोध प्रदर्शन के कारण उत्तर प्रदेश और हरियाणा को दिल्ली से जोड़ने वाले बंद राजमार्गो को खुलवाने के मामले में राकेश टिकैत सहित 43 आंदोलनकारी किसान संगठनों के नेताओं को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर 43 किसान संगठनों के नेताओं और पदाधिकारियों को पक्षकार बनाने की मांग की है, जिनमें राकेश टिकैत, दर्शन पाल, हन्नान मुल्ला, योगेंद्र यादव आदि शामिल हैं।