मंडी। जिला मंडी के एक निजी अस्पताल को लापरवाही भारी पड़ गई है। अस्पताल में पथरी के ऑपरेशन के दौरान पेट में सुई छोड़ने पर पीड़ित महिलाओं को नौ फीसदी ब्याज सहित मुआवजा देना होगा। उच्चतम न्यायालय ने एक निजी अस्पताल को मेडिकल लापरवाही के एक मामले में उपभोक्ता के पक्ष में यह फैसला सुनाया है। इसके साथ ही अस्पताल को उपभोक्ता पक्ष को 50 हजार रुपये शिकायत व्यय भी अदा करना होगा। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय करोल और अरविंद कुमार ने उपभोक्ता ज्योति देवी की ओर से सुंदरनगर स्थित निजी सुकेत अस्पताल और अन्यों के खिलाफ दायर अपील में यह फैसला सुनाया है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनाए गए फैसले के मुताबिक सामान्य परिस्थितियों में पत्थरी निकालने की प्रक्रिया को रोजमर्रा का काम माना जाता है, लेकिन ज्योति देवी के साथ ऐसा नहीं हुआ। उसे 28 जून 2005 को निजी अस्पताल में भर्ती किया गया था। जहां पर एक वरिष्ठ सर्जन ने उनकी पत्थरी का ऑपरेशन किया था। सर्जरी के बाद उसे 30 जून को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई, लेकिन ज्योति की कठिन परीक्षा यहीं पर समाप्त नहीं हुई। उसे सर्जरी वाली जगह पर लगातार दर्द होती रही।
ऐसे में ज्योति को 26 जुलाई 2005 को फिर से अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। अगले ही दिन उसे दर्द न होने का आश्वासन देकर छुट्टी दे दी गई। उपभोक्ता का उपचार एक अन्य निजी अस्पताल में भी करवाया गया। मगर दर्द से छुटकारा नहीं मिल सका। यह प्रक्रिया चार साल तक चलती रही। ऐसे में ज्योति देवी ने पीजीआई चंडीगढ़ में अपना इलाज करवाया तो जांच में यह सामने आया कि उसके पेट में 2.5 सेंटीमीटर की एक सुई रह गई है। इसे निकालने के लिए उसका एक बार फिर से आपरेशन किया गया।
ज्योति ने निजी अस्पताल पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने 18 सितंबर 2013 को उपभोक्ता की शिकायत पर सुनाए फैसले में आदेश दिया था कि उपभोक्ता को बचाव पक्ष की लापरवाही से पांच साल तक शारीरिक पीड़ा सहनी पड़ी। फोरम ने उक्त निजी अस्पतालों की बीमा कंपनियों को उपभोक्ता के पक्ष में पांच लाख रुपये हर्जाना ब्याज सहित अदा करने का फैसला सुनाया था।
बचाव पक्ष की ओर से इस फैसले को राज्य उपभोक्ता आयोग में चुनौती दी गई थी। राज्य आयोग ने बचाव पक्ष की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर हर्जाने की राशि एक लाख रुपये कर दिया। इसके बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद आयोग ने संशोधन याचिका की सुनवाई के दौरान दो लाख रुपये हर्जाना राशि अदा करने का फैसला सुनाया था। ऐसे में याचिकाकर्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करके हर्जाना राशि बढ़ाने की मांग की थी। उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय आयोग के फैसले को निरस्त करते हुए जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा निर्धारित हर्जाना राशि को 9 प्रतिशत ब्याज दर सहित अदा करने के अलावा उपभोक्ता के पक्ष में शिकायत व्यय भी अदा करने का फैसला सुनाया है।