उत्तराखंड में टूट रहे युवक-युवतियों के रिश्ते, वजह जानने लायक

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पढ़े-लिखे नौकरीपेशा होने के बावजूद बांदल घाटी के सीतापुर सहित नौ गांव के युवक-युवतियों के विवाह कराने के लिए घोड़ा-गाड़ी सहित पूरी ताकत झोंकनी पड़ती है। रिश्ते पक्के करने के लिए लोग यहां आते तो है, लेकिन बात बनते-बनते रह जाती है। इसकी मुख्य वजह कोई और नहीं बल्कि सड़क न होना है। इससे यहां रिश्ते बनते-बनते रह जाते हैं। बांदल घाटी के लिए राजधानी महज 18 किलोमीटर दूर है, लेकिन विकास दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आता।

गांवों में ऐसे एक नहीं कई किस्से
घाटी के सीतापुर और इससे ऊपर के नौ गांव की लगभग आठ सौ की आबादी तमाम मुसीबतों के बीच जीवन गुजार रही है। सड़क न होने की वजह से पैदा हुईं मुसीबतें तो लोग जैसे-तैसे झेल लेते हैं, लेकिन उनके बच्चों का भविष्य भी दांव पर है। स्थिति यह है कि गांव के कई युवक और युवतियों के रिश्ते सिर्फ सड़क की वजह से तय होते-होते रह गए। गांव की एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि बेटा बाहर सरकारी नौकरी करता है। दो साल तक उसके लिए कई रिश्ते देखे। बात पक्की भी हुई, लेकिन गांव में सड़क सहित कई दिक्कतों के कारण बात हर बार बनते-बनते रह जाती। आखिर में पास के गांव में ही रिश्ता तय करना पड़ा। इन गांवों में ऐसे एक नहीं कई किस्से हैं।

देहरादून। इसके अलावा सड़क न होने की वजह से स्कूली बच्चों को रोज पैदल परेड करनी पड़ती है। गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों को अस्पताल तक पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं है। युवा गांव में स्वरोजगार करना चाहते हैं, लेकिन सड़क न होने की वजह पर्यटक महज कुछ ही दूरी से लौट जाते हैं। राजधानी के पास होने के बावजूद इन गांवों की आज तक सुध नहीं ली गई। सीतापुर गांव के पूर्व प्रधान राजेंद्र सिंह रावत ने बताया कि 2002 में ताछिला से गांव तक सड़क स्वीकृत हुई थी। कटिंग हुई, लेकिन सड़क पूरी नहीं बन पाई। दो मुख्यमंत्री क्षेत्र में आए, लेकिन ग्रामीणों की पीड़ा कम नहीं कर पाए।
सड़क से महरूम गांव
सीतापुर, ताछिला, ग्वाड़, घेनाकाटल, ताल, बडद् योवाला, भोटकेड़ी, सरोटी, तिमलीसैंण, मोड।

गांव के लोगों के सामने अब बच्चों के विवाह कराने की भी समस्या आने लगी है। कोई अपनी बेटी गांव में देने को तैयार नहीं। इसलिए लोग आसपास के गांवों से ही रिश्ते करते हैं। मैंने प्रधान रहने के दौरान लगातार प्रयास किया, लेकिन आज तक कुछ नहीं हो पाया। 2014 की आपदा में पुल भी टूट गया था। – नमनी देवी, पूर्व प्रधान

मेरी उम्र 72 साल हो गई है, लेकिन सड़क नहीं देख पाया। आज के बच्चे पढ़ लिख कर शहरों का रुख कर रहे हैं। इन हालातों में वे क्यों गांव में रहना चाहेंगे। जो युवा गांव में रहकर कुछ करना भी चाहते हैं, उनके लिए सड़क ही सबसे बड़ी समस्या है। – जुप्पल सिंह रावत, ग्रामीण

कहीं जाने के लिए पहले कई बार सोचना पड़ता है। क्योंकि इतनी दूरी तय करके जाने के साथ ही समय पर लौटने की पाबंदी भी होती है। बच्चों की पढ़ाई खासतौर पर प्रभावित होती है। कभी स्कूल जाते है, कभी नहीं। पुल टूटने से परेशानी और बढ़ गई है। – चरण सिंह, जैंतवाड़ी

भालू दिखा तो भागे घर, एक न जाए तो सब बच्चों की छुट्टी
सड़क के साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट इन गांवों के लिए बड़ी आवश्यकता है। ग्वाड़ से आठ किमी पैदल चलकर धौलागिरी स्कूल आने वाले सातवीं की छात्राएं कंचन रावत और संजना रावत ने बताया कि कई बार रास्ते में जंगली जानवरों से सामना होता है। बताया कि एक बार स्कूल जाते हुए जंगल में भालू को सोता हुआ देखा तो सभी चुपचाप घर की ओर भाग गए। बतौर कंचन ऐसा बहुत बार होता है। इसलिए हम स्कूल रोज नहीं जाते। वहीं, संजना ने बताया  कि गांव के पांच बच्चे साथ में स्कूल जाते है। अगर किसी दिन कोई छुट्टी करता है तो फिर कोई नहीं जाता।

100 मीटर की दूरी के लिए पांच किमी का फेर
मालदेवता से छह किमी आगे बांदल घाटी में 2014 में बादल फटने से पुल टूट गया था। लोगों को अब 100 मीटर दूर मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए पांच किलोमीटर का फेरा लगाना पड़ता है। बांदल घाटी के कुछ गांव देहरादून, जबकि कुछ गांव टिहरी क्षेत्र में पड़ते हैं। इन गांव के बाजार सरखेत, मालदेवता में हैं। बांदल नदी के इस पार सरखेत तो उस पार सीतापुर है। दोनों क्षेत्रों को एक पुल जोड़ता है। इस पुल से सीतापुर के लोगों के सरखेत बाजार आने के लिए केवल 100 मीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी, लेकिन पुल टूटने से अब यह दूरी पांच किमी की हो गई है।