वोट प्रतिशत घटने से वेस्ट यूपी में BJP पर मुसीबत! जानें क्या कहते है सीटवार आंकडे

Trouble for BJP in West UP due to decrease in vote percentage! Know what seat wise figures say
Trouble for BJP in West UP due to decrease in vote percentage! Know what seat wise figures say
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देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश सत्ता का रास्ता भी तय करता है। पहले चरण में यूपी की 8 सीटों पर वोटिंग हुई है, वहां भी 6 सीटें हाई प्रोफाइल मानी जा सकती हैं। उन सीटों पर बड़े चेहरों के बीच में लड़ाई है। कैराना में इस बार बीजेपी की तरफ से प्रदीप चौधरी ताल ठोक रहे हैं, सपा की इकरा हसन खड़ी हैं और बसपा के श्रीकांत राणा भी किस्मत आजमा रहे हैं। इस बार के चुनाव में कैराना में कम वोटिंग देखने को मिली, चुनाव आयोग के मुताबिक इस बार यहां पर वोटिंग प्रतिशत 61.17 फीसदी रहा है।

कैराना का हाल
अब कैराना सीट का ट्रेंड बताता है कि जब 2014 के लोकसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत में एक बड़ा उछाल देखने को मिला था, वो परिवर्तन का वोट माना गया, उस चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की। इसे ऐसे समझिए कि 2009 में कैराना में 56.59þ वोटिंग हुई थी, तब बसपा ने वहां से जीत दर्ज की, लेकिन 2014 के चुनाव में आंकड़ा 73.08 चला गया, यानी कि 17 फीसदी के करीब वोटिंग में इजाफा देखने को मिला। उस बड़े उछाल ने ही कैराना की सीट बीजेपी की झोली में डाल दी। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में कैराना में वोटिंग प्रतिशत में थोड़ा सा गिर गया, आंकड़ा 67.41 दर्ज किया गया, यानी कि तब 6 फीसदी के करीब मतदान कम हुआ।

अब क्योंकि उस चुनाव में वोट प्रतिशत में गिरावट 2014 जैसी नहीं थी, ऐसे में कैराना की सीट बीजेपी के खाते में ही रही और वहां कोई परिवर्तन देखने को नहीं मिला। इस बार कैराना में 61.17 फीसदी मतदान हुआ है, यानी कि पिछली बार के मुकाबले फिर 6 प्रतिशत वोटिंग गिर गई है। अगर इस तरह से देखा जाए तो इस बार कैराना सीट पर खेल भी हो सकता है। जानकार मानते हैं कि जब वोटिंग एक्स्ट्रीम अंदाज में होती है, नतीजे परिवर्तन वाले देखने को मिल सकते हैं, यानी कि अगर काफी कम वोटिंग तो भी परिवर्तन के संकेत और काफी ज्यादा वोटिंग, तब भी बदलाव की बहार।

मुजफ्फरनगर का हाल
इसी तरह अगर मुजफ्फरनगर की बात की जाए तो यहां पर इस बार 58.5 प्रतिशत वोट पड़ा है। बीजेपी ने यहां से एक बार फिर संजीव बालियान को उतारा है, सपा ने हरेंद्र मलिक और बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को मौका दिया है। समझने वाली बात ये है कि मुजफ्फरनगर में 2009 के चुनाव में 54.44 प्रतिशत वोट पड़े थे, वहीं 2014 में मोदी लहर के दौरान वोटिंग प्रतिशत बढ़कर 69.74 पहुंच गई। यानी की एक तरह से 15 फीसदी का बड़ा और निर्णायक इजाफा देखने को मिला। वो वोट परिवर्तन के लिए पड़ा था और बीजेपी के संजीव बालियान ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2019 के चुनाव में वोटिंग 68.20 प्रतिशत दर्ज हुई जो 2014 की तुलना में ज्यादा कम नहीं थी, यानी कि ना परिवर्तन की लहर थी और ना ही कोई बड़ी नाराजगी। इसी वजह से तब एक बार फिर बीजेपी के संजीव बालियान ने वहां से जीत दर्ज की।

अब अगर इस बार के आंकड़ों पर नजर डालें तो मुजफ्फरनगर सीट पर 58.5 फीसदी वोट पड़े हैं, यानी कि यहां भी 10 फीसदी के करीब गिरावट देखने को मिल गई है। इस समय ये कम हुई वोटिंग ही बीजेपी के लिए सबसे बड़ा चिंता का सबब बन सकता है। जानकार सवाल उठा रहे हैं कि कहीं अति विश्वास की वजह से बीजेपी के वोटर ही कम संख्या में तो बाहर नहीं निकले? अब पुख्ता रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन पिछले कुछ चुनावों का ट्रेंड बताता है कि ज्यादा कम वोटिंग होने पर सत्ताधारी दल के लिए मुश्किलें बढ़ भी सकती हैं।

सहारनपुर का हाल
यूपी की ही सहारनपुर सीट की बात करें तो इस बार यहां पर 65.95 फीसदी मतदान हुआ है। बीजेपी ने इस सीट से फिर राघव लखनपाल को मौका दिया है, वहीं इंडिया गठबंधन ने इमरान मसूद को उतारा है। बसपा की तरफ से माजिद अली खड़े हैं। इस सीट पर 2009 में 63.25 प्रतिशत वोट पड़े थे, तब बीजेपी के राघव लखनपाल जीत गए, फिर मोदी लहर के दौरान 11 फीसदी का उछाल आया, लेकिन नतीजा वहीं- राघव की जीत। 2019 की बात करें तो 70 फीसदी मतदान रहा, लेकिन जीत फिर बीजेपी के हाथ में ही गई। यानी कि सहारनपुर एक ऐसी सीट रही है जहां पर पिछले 15 सालों से एक ट्रेंड बरकरार है, ज्यादा या कम वोट प्रतिशत यहां फर्क नहीं पड़ रहा है।