दुनिया के 10 सबसे अमीर देश कौन से हैं और भारत किस पायदान पर है

Which are the 10 richest countries in the world and at what rank is India?
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दुनिया के सबसे अमीर देशों के बारे में ऐसे किसी सवाल का जवाब देना आसान नहीं है. इसको लेकर अमूमन अनुमान ज़ाहिर किए जाते हैं, लेकिन वे सटीक हों, ज़रूरी नहीं. फिर सवाल यह भी तो है कि आप किस तरह की अमीरी की बात कर रहे हैं.वैसे आमतौर पर किसी देश की अमीरी का आकलन उसके सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी से लगाया जाता है जो एक निश्चित अवधि में किसी देश की वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन को जोड़कर बनता है. किसी देश की संपत्ति को दर्शाने के लिए इसे एक संकेतक के रूप में देखा जाता है.यह अर्थव्यवस्था को मापने का वैसा पैमाना है जो सबसे सबसे मशहूर है और ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है. इसमें अन्य बातों के अलावा, यह मालूम हो जाता है कि सरकार को कितना कर हासिल हो रहा है और सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों पर कितना पैसा ख़र्च कर सकती है.हालांकि इस पैमाने पर लोग सवाल भी उठाते रहे हैं, लेकिन इसके आधार पर दुनिया के दस अमीर देशों के बारे में जानकारी मिल सकती है.अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विज़ुअल कैपिटलिस्ट के अक्टूबर 2022 के आंकड़ों के हिसाब से दुनिया के दस अमीर देशों की सूची इस तरह बनेगी:-

दुनिया के 10 सबसे अमीर देश

10. इटली, 1.99 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर
9. रूस, 2.113 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर
8. कनाडा, 2.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर
7. फ़्रांस, 2.778 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर
6. ब्रिटेन, 3.199 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर
5. भारत, 3.469 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर
4. जर्मनी, 4.031 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर
3. जापान, 4.301 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर
2. चीन, 18.321 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर
1. अमेरिका, 25.035 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर
इन आंकड़ों से हमें क्या पता चलता है?

इन देशों की अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ जानकारी तो मिलती है, लेकिन सब कुछ पता नहीं चल पाता.जीडीपी के कुछ आलोचक बताते हैं कि जीडीपी में सबसे अहम तीसरा शब्द प्रॉडक्ट है यानी उत्पाद. इस पैमाने की शुरुआत करने वाले अमेरिकी अर्थशास्त्री सिमोन कुज़नेट्स भी इसको बहुत अहमियत नहीं देते थे.उनका इरादा, 1930 के दशक में अर्थव्यवस्था को समग्र रूप से मापने के लिए एक तरीका खोजने का था ताकि आर्थिक मंदी से देश को बाहर निकालने का कोई पैमाना मिल सके.इस पैमाने के लिए वास्तव में उत्पादक समझी जाने वाली संपत्ति का आकलन करना था और यह अच्छे जीवनशैली के आकलन का पैमाना था. लेकिन जल्दी ही द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया और प्राथमिकताएं बदल गईं. बेहतर जीवनशैली की जगह जीवन को बचाने की चुनौती सामने थी.अत्यधिक प्रभावशाली ब्रिटिश अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स के लिए यह जानना आवश्यक था कि अर्थव्यवस्था क्या उत्पादन कर सकती है और युद्ध के दौरान लोगों की खपत के लिए कम से कम कितना चाहिए, बचे हुए उत्पादों से युद्ध का ख़र्च निकालने की चुनौती थी.

यानी अब एक-दूसरे तरह के आकलन की ज़रूरत थी और उसको मापने का उद्देश्य भी बदल चुका था. यह बाद में भी बना रहा.युद्ध के बाद, अमेरिका की दिलचस्पी यह जानने में थी कि उसने जिन देशों को पुनर्निमाण के लिए सहायता दी है, उसका इस्तेमाल किस तरह से हो रहा है. और उसने इसके लिए फिर से जीडीपी को पैमाना बनाया.इसके बाद इस पैमाने को संयुक्त राष्ट्र ने भी माना और यह वैश्विक मानक बन गया.

कुज़नेट्स आर्थिक कल्याण का जो पैमाना बनाना चाहते थे, वह अर्थव्यवस्था में गतिविधि मापने का पैमाना बन गया.इसमें मूलभूत अंतर यह है कि ऐसी बहुत-सी चीज़ें हैं जो समाज के लिए अच्छी नहीं हैं, पर अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी हैं.उदाहरण के लिए, अर्थव्यवस्था में बच्चों की जान बचाने वाली किसी चीज़ का उत्पादन उतना ही मायने रखता है जितना कि उन्हें मारने वाले हथियारों का उत्पादन. और तो और यह गुणवत्ता को नहीं मापता, केवल मात्रा को मापता है.जब आप ट्रेन यात्रा की टिकट के लिए भुगतान करते हैं तो वह जीडीपी की गणना में शामिल होता है. लेकिन उसी वक्त यह नहीं गिना जाता है कि आप जो ट्रेन ले रहे हैं वह जीर्ण-शीर्ण है या खचाखच लोगों से भरी हुई है, उसकी सेवा ख़राब और गंदी है, या फिर वह अच्छी तरह से मेंटेन और समय पर पहुंचने वाली एक बुलेट ट्रेन है.

दूसरी ओर, यह धन के असमान वितरण के बारे में कुछ नहीं कहता है. किसी देश की जीडीपी बहुत अधिक हो सकती है, लेकिन वहां आर्थिक असमानता भी बहुत ज़्यादा हो सकती है.
ध्यान देने की बात यही कि जीडीपी का प्रति व्यक्ति आकलन करने पर सूची में काफ़ी बदलाव हो जाता है. प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद वह पैमाना है जो किसी देश की राष्ट्रीय आय (किसी निश्चित अवधि में सकल घरेलू उत्पाद के माध्यम से) और उस स्थान के निवासियों के बीच संबंध को दर्शाता है.हालांकि इससे भी वास्तविकता का पता नहीं चलता है, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक़ इससे किसी देश की सामाजिक आर्थिक स्थिति का बेहतर पता चलता है.आईएमएफ़ के वर्तमान आकलन (2023) के अनुसार, प्रति व्यक्ति जीडीपी के आकलन पर दुनिया के दस सबसे अमीर देश हैं:-

1. लक्ज़मबर्ग
2. सिंगापुर
3. आयरलैंड
4. क़तर
5. मकाऊ
6. स्विट्ज़रलैंड
7. नॉर्वे
8. संयुक्त अरब अमीरात
9. ब्रुनेई
10. अमेरिका
अमेरिका को छोड़कर पहली सूची का कोई भी देश दूसरी सूची में शामिल नहीं है. अमेरिका शामिल तो है, लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद की लगभग 20% हिस्से की भागीदारी के बाद भी वह दूसरी सूची में 10वें स्थान पर है.नंबर 1 देश लक्ज़मबर्ग कितना अमीर?
लक्ज़मबर्ग, क्षेत्रफल और जनसंख्या, दोनों के हिसाब से दुनिया के सबसे छोटे देशों में से एक है. लेकिन इस दूसरी रैंकिंग में वह दुनिया का सबसे अमीर देश है. दरअसल, यह दुनिया का सबसे बड़ा बैंकिंग केंद्र है, इसकी राजधानी में 200 से अधिक बैंक और 1,000 से ज़्यादा इंवेस्टमेंट फ़ॉड संचालित होते हैं.

दुनिया के सबसे शिक्षित और अत्यधिक कुशल कर्मचारियों को मुहैया कराने वाला देश है लक्ज़मबर्ग. यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मांगों को पूरा करने के साथ ही उद्योगों के हब और वित्तीय सेवाओं पर आधारित आयात-निर्यात अर्थव्यवस्था से समृद्ध है. इसमें छोटे और मध्यम आकार के उद्योग धंधे भी ख़ूब हैं और छोटा ही सही, लेकिन समृद्ध कृषि क्षेत्र भी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाता है.

वैसे लक्ज़मबर्ग की अमीरी की एक और वजह है. फ़्रांस, जर्मनी और बेल्जियम जैसे पड़ोसी देश के नागरिक लक्ज़मबर्ग में काम करते हैं, जीडीपी में योगदान करते हैं, लेकिन वे रहते अपने देश में हैं, इस लिहाज से उनकी गिनती प्रति व्यक्ति जीडीपी की गणना में नहीं होती है. टैक्स में रियायतों के चलते यह विदेशी कारोबारियों को भी आमंत्रित करता है. समाचार पत्र ला मोंडे और स्यूडड्यूत्शे ज़िटुंग के अनुसार, देश में पंजीकृत 90% कंपनियों के मालिक विदेशी हैं.

लेकिन यहां कर्मचारियों की पगार बहुत अधिक है.

लक्ज़मबर्ग के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्टैटिस्टिक्स एंड इकोनॉमिक रिसर्च के अनुसार, देश में न्यूनतम मज़दूरी 2,488 अमेरिकी डॉलर प्रति माह है, इसलिए किसी अकुशल कर्मचारी को भी कम से कम इतना वेतन मिलना तय है.यहां प्रति घंटे काम के लिए 14.40 अमेरिकी डॉलर मिलते हैं, जो अमेरिका के न्यूनतम मज़दूरी 7.25 डॉलर प्रति घंटे की तुलना में दोगुना है. वैसे दुनिया भर में प्रति घंटे सबसे ज़्यादा भुगतान ऑस्ट्रेलिया में होता है. 2022 के आंकड़ों के मुताबिक़, वहां एक घंटे के लिए न्यूनतम मज़दूरी 14.54 अमेरिकी डॉलर प्रति घंटा है, लक्ज़मबर्ग से थोड़ा ही ज़्यादा. लक्ज़मबर्ग में औसत वेतन 5,380 अमेरिकी डॉलर प्रति माह है, लेकिन बैंकों, बीमा कंपनियों, ऊर्जा उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी में काम करने वाले लोगों को इससे काफ़ी अधिक वेतन मिलता है.

भारत की स्थिति क्या है?
भारत की अर्थव्यवस्था वैसे तो जीडीपी के पैमाने पर दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था है. लेकिन प्रति व्यक्ति जीडीपी के पैमाने पर दुनिया के 194 देशों की सूची में भारत का स्थान 144वां है. एशियाई देशों में ही इस सूची में भारत 33वें पायदान पर है. न्यूनतम मज़दूरी के आकलन में भारत का राष्ट्रीय औसत 2.16 डॉलर प्रतिदिन का है, यानी क़रीब 65 डॉलर प्रतिमाह.