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नई दिल्ली. 35 लाख रुपये केले का बिल…रोज का खर्चा करीब 50 लाख.. यह कम था तो कोरोना के दौर में 11 करोड़ और खर्च हुए. इसके बाद भी खिलाड़ियों का बकाया पैसा, टीम सेलेक्शन में धांधली और अब खिलाड़ियों को जान से मारने की धमकी. यह संगीन आरोप लग रहे हैं क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड पर, जो इन दिनों क्रिकेट से ज्यादा इन्हीं सब बातों को लेकर चर्चा में हैं. मामला इतना तूल पकड़ चुका है कि उत्तराखंड पुलिस ने एसोसिएशन के सचिव माहिम वर्मा, मुख्य कोच मनीष झा और प्रवक्ता संजय गुसाईं से पूछताछ तक शुरू कर दी है. इन सभी लोगों के नाम उस एफआईआर में हैं, जो एक पूर्व भारतीय अंडर-19 क्रिकेटर के पिता ने बेटे को मिली जान से मारने की धमकी के बाद लिखाई है.
देहरादून के एसएसपी जन्मजेय खंडूरी ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, “पिछले तीन दिन में हमने माहिम वर्मा, मनीष झा और संजय गुसाईं से अलग-अलग बुलाकर पूछताछ की है. हमने इस मामले में उनके बयान दर्ज किए और जरूरत पड़ने पर दोबारा इन्हें बुलाया जाएगा.” इस मामले में देहरादून के वसंत विहार पुलिस स्टेशन में जबरन वसूली, आपराधिक साजिश, जानबूझकर अपमानित करने से जुड़ी आईपीसी की धाराओं में एफआईआर दर्ज हुई है.
पूर्व क्रिकेटर के पिता ने एफआईआर दर्ज कराई है
शिकायतकर्ता वीरेंद्र सेठी, जो पूर्व अंडर-19 खिलाड़ी आर्य सेठी के पिता हैं, ने आरोप लगाया है कि उनके बेटे को पिछले साल विजय हजारे टूर्नामेंट के दौरान उत्तराखंड क्रिकेट टीम के कोच मनीष झा, टीम मैनेजर नवनीत मिश्रा और वीडियो एनालिस्ट पीयूष रघुवंशी ने जान से मारने की धमकी दी थी. इतना ही नहीं, सेठी ने सचिव पर बेटे को टीम में चुनने के लिए 10 लाख रुपये मांगने का भी आरोप लगाया है.
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा समीक्षा किए गए रिकॉर्ड और खिलाड़ियों के साथ हुई बातचीत के मुताबिक, उत्तराखंड क्रिकेट की परेशानी आगे कम होने के बजाए बढ़ने ही वाली है.
बातचीत के दौरान खिलाड़ियों ने बताया कि उन्हें 100 रुपये डीए दिया गया जबकि तय राशि 1500 है. इतना ही नहीं टूर्नामेंट और ट्रेनिंग कैंप के दौरान खाना तक नहीं मिला जबकि एसोसिएशन ने महामारी के दौरान ही खिलाड़ियों पर लाखों के खर्चे का बिल जोड़ दिया.
कोरोना काल में खिलाड़ी खा गए 35 लाख के केले!
उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन की 31 मार्च, 2020 की ऑडिट रिपोर्ट में खिलाड़ियों के खाने पर 1.74 करोड़ रुपये और दैनिक भत्ते पर 49 लाख रुपये खर्च होना बताया गया है. इसमें अकेले केले का बिल ही 35 लाख रुपये हैं और पानी की बोतल पर 22 लाख रुपये खर्च हुए हैं.
उत्तराखंड टीम की तरफ से खेलने वाले रॉबिन बिष्ट ने पूर्व अंडर-19 क्रिकेटर द्वारा लगाए गए आरोपों की पुष्टि की है और मुंबई के खिलाफ हाल ही में रणजी ट्रॉफी क्वार्टर फाइनल से पहले की एक घटना को याद करते हुए बताया, “पूल में रिकवरी सेशन के बाद हम दोपहर के खाने के लिए गए तो होटल स्टाफ ने हमसे कहा कि हमें खाना नहीं परोसने के लिए कहा गया है. इसके बाद जब हमने टीम मैनेजर को फोन किया, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘स्विगी या ज़ोमैटो से कुछ ऑर्डर कर लो या भूख रहो. वैसे भी एक दिन खाना नहीं खाओगे तो मर नहीं जाओगे.” उत्तराखंड यह मुकाबला मुंबई से रिकॉर्ड 725 रन से हारा था.
एसोसिएशन ने बस का इंतजाम तक नहीं किया: बिष्ट
बिष्ट ने आगे बताया, “अगले दिन, हमारी दिल्ली के लिए फ्लाइट थी. एयरपोर्ट से बाहर निकलने के बाद, हमने फिर से अपने टीम मैनेजर को फोन करके कहा कि हमें देहरादून जाना है. ‘हमारी बस कहाँ है?’ जवाब आया, “कैब, बस या ट्रेन बुक करो. हमारा काम आप लोगों को दिल्ली पहुंचाना था, आपके घर नहीं.”
निर्दलीय विधायक ने भी गंभीर आरोप लगाए
निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने भी सीएयू के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “कोविड के दौरान, सीएयू ने प्रोफेशनल फीस के रूप में 6.5 करोड़ रुपये बांटे. मैं जानना चाहता हूं कि उन्होंने यह पैसा किसे दिया? मार्च 2020 से पहले, प्रोफेशनल फीस लगभग 2.75 करोड़ रुपये थी. कोविड के दौरान 1.27 करोड़ रुपये का लंच और डिनर किसने किया? उन्होंने क्रिकेटिंग कोच कैसे हायर किए? मैंने इसे उत्तराखंड विधानसभा में भी उठाया है. मुझे लगता है कि बीसीसीआई को हस्तक्षेप करना चाहिए. यहां बहुत बड़ा भ्रष्टाचार चल रहा है.
12 विधायकों ने उत्तराखंड सीएम को चिठ्ठी लिखी
निर्दलीय विधायक कुमार ने आगे कहा, “लॉकडाउन के दौरान जब सब कुछ बंद था, तो एसोसिएशन के कर्ताधर्ताओं ने 11 करोड़ रुपये खर्च कर दिए और जब सब कुछ खुल गया और क्रिकेट पहले जैसा हो रहा है, तब आपका खर्चा 12 करोड़ यह कैसे हो सकता है?
उन्होंने कहा कि मैं इस मामले को राज्य सरकार के संज्ञान में लाया हूं. मैंने और अन्य 12 विधायकों ने मुख्यमंत्री को चिठ्ठी लिखी है और जरूरत पड़ी तो हम सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे. सर्वोच्च अदालत ने लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें लागू करने को कहा था और मिस्टर वर्मा एंड कंपनी (सचिव माहिम वर्मा) कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं कर रहे.