Dollar vs Currency: रुपये का गिरना एक सिक्के के दो पहलू की तरह, 6 नुकसान, ये 4 फायदे भी

Dollar vs Currency: Falling of Rupee is like two sides of a coin, 6 disadvantages, these 4 advantages too
Dollar vs Currency: Falling of Rupee is like two sides of a coin, 6 disadvantages, these 4 advantages too
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नई दिल्ली। डॉलर (Dollar) के मुकाबले लगातार गिरते रुपये (Rupee) को बचाने के लिए भारत (India) अपने विदेशी मुद्रा भंडार (India Forex Reserves) से खर्च कर रहा है. विदेशी निवेशक भारत से अमेरिका भाग रहे हैं. जहां के केंद्रीय बैंक ने दरें बढ़ा दी हैं. व्यापार संतुलन के पलड़े पर भी भारत को नुकसान उठाना पड़ रहा है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि 80 वह कगार है, जहां से रुपये का लुढ़कना बेकाबू हो सकता है. इससे सरकारी वित्त और कारोबारी योजनाओं में भारी रुकावटें पैदा हो जाएंगी.

लगातार गिरता रुपया भारत के कुछ सेक्टर्स के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है. वहीं, कुछ सेक्टर्स में उत्पादन की लगात बढ़ जाएगी और इसका असर देश की आम जनता की जेब पर पड़ेगा.

गिरते रुपये का नुकसान

1. ऑटोः करीब 10-20 फीसदी कल-पुर्जों और दूसरे पार्ट्स का आयात होने के कारण कारें महंगी हो सकती हैं. यह असर कंपनी के निर्यात और आयात वाले मार्केट पर निर्भर करेगा.

2. टेलीकॉम: इस उद्योग के विभिन्न पुर्जों का बड़ा आयातक होने के नाते अनुमान है कि भारत में कमजोर रुपया कंपनियों की लागत पूंजी को 5 फीसदी तक बढ़ सकता है. इस वजह वो टैरिफ बढ़ाने को मजबूर हो जाएंगी.

3. कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स: इस कारोबार में आयातित वस्तुएं कुल लागत का 40-60 फीसदी के करीब बैठती हैं. कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड अप्लाएंसेज निर्माताओं के मुताबिक, इस उद्योग की वस्तुओं की कीमतों में 4-5 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है.

4. सौर ऊर्जा: भारत के सौर ऊर्जा संयंत्र सोलर सेल और मॉड्यूल्स का आयात करते हैं. डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में प्रति एक रुपये की गिरावट पर सौर ऊर्जा की लागत का खर्च 2 पैसे प्रति यूनिट बढ़ जाएगा.

5. एफएमसीजी: इन वस्तुओं के उत्पादन में करीब आधी लागत तो आयात किए कच्चे माल की होती है. दबाव बढ़ने पर कंपनियां इस लागत को उपभोक्ताओं पर डालने में गुरेज नहीं करेंगी.

6. तेल और गैस: भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल और गैस की आधी मात्रा का आयात करता है. इनके आयातकों के लिए कीमतें बढ़ती गई हैं. ऐसे में इसकी लागत या तो उपभोक्ताओं पर डाली जा सकती है या फिर सरकार इसे वहन करेगी. ऐसी स्थिति में उसके खजाने पर असर पड़ेगा. ईंधन की ऊंची कीमतों से महंगाई में भी इजाफा होता है.

गिरते रुपये का फायदा

1. दवाई उद्योग: अमेरिका से वास्ता रखने वाली कंपिनयों को फायदा होने वाला है. भारत का एक तिहाई निर्यात अमेरिका को ही होता है. 2013-14 के मुकाबले निर्यात 103 फीसदी बढ़कर पिछले वित्त वर्ष में 1.83 लाख करोड़ रुपये हो गया. लेकिन 4-5 अरब डॉलर के सामान का आयात भी हुआ. घरेलू बाजार पर केंद्रित रहने वाली कंपनियों और दवाओं के तत्व सप्लाई करने वालों पर असर पड़ेगा.

2. आईटी सर्विस: ज्यादातर कंपनियां क्लाइंट का बिल डॉलर में ही बनाती हैं और बड़ी कंपिनयों का 50-60 फीसदी राजस्व अमेरिकी मार्केट से ही आता है. रुपये में 100 बीपीएस की गिरावट का मतलब है मुनाफे में सीधे 30 बीपीएस का फायदा.

3. कपड़ा उद्योग: भारतीय निर्यातकों को बांग्लादेश जैसे मुल्कों से मुकाबले के लिए लागत के मामले में बढ़त मिल जाती है. ज्यादातर कच्चा माल यहीं मिल जाता है. चीन, इंडोनेशिया और बांग्लादेश से भारत भी सिलेसिलाए और दूसरे कपड़े आयात करता है.

4. स्टील: भारत अपने स्टील का 10-15 फीसदी निर्यात करता है. कमजोर रुपये ने उस नफे-नुकसान के असर को बराबर कर दिया, जो मई में सरकार के निर्यात पर 15 फीसदी टैक्स लगाने से पैदा हुआ था. (