बिहार में कांग्रेस के लिए मजबूरी बन गई है RJD? 2024 में भी बन रहे 2009 चुनाव जैसे हालात

Has RJD become a compulsion for Congress in Bihar? Situation like 2009 elections is being created in 2024 also
Has RJD become a compulsion for Congress in Bihar? Situation like 2009 elections is being created in 2024 also
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पटना: लोकसभा चुनाव के पहले चरण में बिहार की चार सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है. इसके लिए नॉमिनेशन का आज अंतिम दिन है और विपक्षी इंडिया ब्लॉक में सूबे की 40 सीटों के बंटवारे की गुत्थी है कि सुलझने का नाम नहीं ले रही. लालू यादव की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे पर बात ऐसी फंसी कि पटना से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौरा चलता रहा लेकिन समाधान सामने नहीं आ सका. ऐलान का इंतजार अब भी है.

सीट शेयरिंग को लेकर जारी रार के बीच कांग्रेस हाईकमान एक्टिव हुआ और मंगलवार की शाम बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के साथ पार्टी नेताओं की बैठक हुई. इस बैठक के बाद यह कहा जा रहा है कि बुधवार को किसी भी वक्त विपक्षी गठबंधन में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला सामने आ सकता है. लेकिन चर्चा सबसे अधिक कांग्रेस को लेकर आरजेडी के तेवरों की हो रही है. आरजेडी जिस कांग्रेस के साथ मिलकर बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को पटखनी देने की कसमें खाती रही, उसी कांग्रेस को पार्टी ने एक-एक सीट के लिए क्यों तरसा दिया है?

बिहार कांग्रेस के नेताओं ने सूबे की दर्जनभर सीटों पर दावेदारी की थी. विपक्षी गठबंधन से जेडीयू की एग्जिट के बाद ऐसी चर्चा भी शुरू हो गई कि अब कांग्रेस के लिए अधिक सीटें पाने की राह आसान हो गई है. लेकिन बिहार की राजनीति के कद्दावर चेहरे लालू यादव के आगे कांग्रेस अब बैकफुट पर आती नजर आ रही है. लालू-तेजस्वी ने कांग्रेस को छह सीटें ऑफर की थीं. आरजेडी लगातार उम्मीदवारों का ऐलान भी करती जा रही है.

आरजेडी के रवैये से कांग्रेस नेता नाराज तो हैं लेकिन पार्टी लालू-तेजस्वी के फैसले के खिलाफ जाने का साहस नहीं दिखा पा रही. होली का त्योहार अब बीत गया है और तेजस्वी की कांग्रेस नेताओं के साथ मीटिंग के बाद आरजेडी अब सूत्रों के मुताबिक आठ सीटें देने के लिए तैयार है. हालांकि, अभी इसे लेकर कोई ऐलान नहीं हुआ है.

मौजूदा महागठबंधन में हालात ऐसे बने हुए हैं कि अगर कांग्रेस को उसकी डिमांड वाली लोकसभा सीट नहीं मिली तो कुछ सीटों पर फ्रेंडली फाइट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. कांग्रेस के नेता भी इसके लिए तैयार बैठे हैं. पूर्णिया लोकसभा सीट विवाद की सबसे बड़ी वजह है. 2009 के चुनाव में सीटों को लेकर खींचतान के बीच दोनों दल अलग-अलग चुनाव मैदान में उतर पड़े थे.

कांग्रेस के बूते ही मजबूत हुए लालू

आरजेडी और कांग्रेस गठबंधन के बीच पिछले चुनावों के आंकड़े क्या कहते हैं, इसकी चर्चा से पहले इसकी चर्चा भी जरूरी है कि बिहार में कभी जुगाड़ से अल्पमत की सरकार चलाने वाले लालू प्रसाद यादव ने बाद में कांग्रेस के बूते ही अपनी सियासी पकड़ मजबूत की. बाद में धीरे-धीरे लालू यादव ने कांग्रेस के ही बेस वोट बैंक में सेंधमारी कर ली. लालू यादव ने जिस M-Y समीकरण के बूते लंबे अरसे तक बिहार में सरकार चलाई, उसका एम यानी मुस्लिम कभी कांग्रेस का बेस वोटर था.

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सामाजिक समीकरणों के हिसाब से देखें तो अनुसूचित जाति और सवर्ण वोटर्स भी कभी कांग्रेस का बेस वोटर थे. बाद में अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों का जुड़ाव लालू यादव के साथ होता गया और आरजेडी की अगड़ा बनाम पिछड़ा पॉलिटिक्स का नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा. सवर्ण वोटर्स कांग्रेस से दूर होते चले गए और बीजेपी को इसका सीधा लाभ मिला. कांग्रेस 1998 में जब पहली बार आरजेडी के साथ गठबंधन में आई, तब से पार्टी कभी लालू की छाया से बाहर नहीं निकल पाई. कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने उतरी भी तो उसका प्रदर्शन इतना खराब रहा जिससे उसे गठबंधन की ओर ही लौटना पड़ा. बिहार में कांग्रेस की स्थिति और अतीत देख कहा जा रहा है कि आरजेडी उसके लिए मजबूरी बन चुकी है.

कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन 1998 से

-साल 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आरजेडी ने पहली दफा गठबंधन किया. तब बिहार और झारखंड को मिलाकर कुल 54 लोकसभा सीटें थीं और आरजेडी को इनमें से 17 पर जीत मिली थी. कांग्रेस पांच सीटें जीतने में सफल रही थी.

-1999 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने 7 और कांग्रेस ने पांच सीटों पर जीत हासिल की. कांग्रेस को आरजेडी ने 13 सीटें दी थीं और उनमें से भी पांच पर दोनों दलों की फ्रेंडली फाइट भी हुई थी.

-2004 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने 22 और कांग्रेस ने तीन सीटें जीतीं.

-2014 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी को चार, कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली थी.

-2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी का खाता नहीं खुला जबकि कांग्रेस एक सीट जीतने में सफल रही थी.

विधानसभा चुनाव में कैसा रहा गठबंधन का प्रदर्शन

-2005 (नवंबर) के विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने 54 और कांग्रेस को नौ सीटों पर जीत मिली थी.

-2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने 80 और कांग्रेस ने 27 सीटें जीती थीं. तब नीतीश की पार्टी जेडीयू भी आरजेडी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में थी.

-2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने 75 और कांग्रेस ने 19 सीटें जीतीं.

कांग्रेस ने जब अकेले लड़ा, कैसा रहा प्रदर्शन?

साल 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस ने बगैर गठबंधन के चुनाव लड़ा था. तब आरजेडी को 124, कांग्रेस को 23 सीटों पर जीत मिली थी. साल 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में भी दोनों ही पार्टियां बगैर गठबंधन के चुनाव मैदान में उतरीं. 2009 के लोकसभा चुनाव में भी दोनों दल अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरे और तब आरजेडी को चार, कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली थी. इन चुनावों में आरजेडी को 75, कांग्रेस को 10 सीटों पर जीत मिली थी. 2010 के विधानसभा चुनाव में अलग-अलग लड़कर आरजेडी ने 22 और कांग्रेस ने चार सीटें जीती थीं.