हिमाचल में कांग्रेस बागियों को बीजेपी में शामिल करना और टिकट देना पार्टी को पड़ेगा भारी!

In Himachal Pradesh, inclusion of Congress rebels in BJP and giving them tickets will prove costly for the party!
In Himachal Pradesh, inclusion of Congress rebels in BJP and giving them tickets will prove costly for the party!
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धर्मशाला: देश में लोकसभा चुनावों के साथ साथ कई उपचुनाव भी होने जा रहें हैं. 19 अप्रैल से शुरू होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ ही 13 राज्यों की 26 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव भी होंगे, जिनमें हिमाचल प्रदेश की वे छह सीटें भी शामिल हैं, जहां से चुने गए कांग्रेस विधायकों को बगावत के कारण अयोग्य ठहराया गया है. पिछले महीने राज्यसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में मतदान करने वाले इन विधायकों को 23 मार्च को बीजेपी ने पार्टी में शामिल कर लिया था और आगामी विधानसभा उप-चुनावों में टिकट देने की घोषणा भी कर दी थी.

हिमाचल की छह सीटों पर दांव

हिमाचल प्रदेश की छह विधानसभा सीटों – धर्मशाला, लाहौल-स्पीति, सुजानपुर, बड़सर, गगरेट और कुटलैहड़ पर एक जून को लोकसभा चुनाव के साथ मतदान होगा. बीजेपी ने बागी विधायकों में से धर्मशाला निर्वाचन क्षेत्र से चार बार विधायक रहे सुधीर शर्मा को, सुजानपुर से तीन बार विधायक रहे राजिंदर राणा को, लाहौल-स्पीति से दो बार विधायक रहे रवि ठाकुर को, बड़सर से तीन बार विधायक रहे इंदरदत्त लखनपाल को उम्मीदवार बनाया है, इसके अलावा देवेन्द्र कुमार भुट्टो को कुटलैहड़ से और चैतन्य शर्मा को गगरेट से आगामी चुनावों के लिए टिकट की घोषणा की है. वैसे, कांग्रेस की मुश्किलें जहां इन छह विधायकों की बगावत से शुरु हुई थी, अब इन विधायकों को बीजेपी टिकट मिलने के बाद बीजेपी में उठ रही बगावत में तब्दील होती दिखाई दे रही है. हिमाचल प्रदेश के पूर्व मंत्री तथा लाहौल एवं स्पीति विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के नेता राम लाल मार्कण्डा ने कांग्रेस के बागी रवि ठाकुर को मैदान में उतारे जाने के विरोध में मंगलवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ने त्यागपत्र दे दिया. मार्कण्डा बीजेपी की पिछली सरकार के दौरान कृषि और जनजातीय विकास मंत्री थे. उन्होंने अपने समर्थकों के साथ बीजेपी छोड़ दी और उन्होने निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव लड़ने की भी बात कही. रवि ठाकुर ने 2022 विधानसभा चुनावों में मार्कण्डा को 1,616 वोटों के मामूली वोटों के अंतर से हराया था.

बीजेपी में आंतरिक झगड़ा

राकेश कालिया, जिन्होंने पहले 2022 में कांग्रेस के असंतुष्ट चैतन्य शर्मा के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे, ने भी पार्टी की प्रारंभिक सदस्यता से अपना इस्तीफा दे दिया है. कालिया का इस्तीफा, पार्टी के भीतर उबलते गुस्से को साफ दिखा रहा है. बीजेपी नेता एवं पूर्व ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री वीरेंद्र कंवर ने भी पार्टी द्वारा उनकी जगह कांग्रेस के बागी देविंदर कुमार भुट्टो को कुटलैहड़ से टिकट दिये जाने पर नाराजगी व्यक्त की है और इस फैसले की समीक्षा किए जाने की मांग की है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व करने वाले राजिंदर राणा ने 2022 में सुजानपुर सीट महज 399 वोटों के अंतर से जीती थी. 28 मार्च को अपने क्षेत्र सुजानपुर लौटे कांग्रेस के बागी नेता राजेंद्र राणा को कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखाए. इसके साथ ही यहां बीजेपी का सिरदर्द इस लिए बढ़ जायेगा क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव के बीजेपी प्रत्याशी रणजीत सिंह राणा ने आजाद उम्मीदवार के तौर पर लड़ने का ऐलान किया है.

भाजपा के लिए है दोतरफा चुनौती

बीजेपी के वो नेता जिन्हें पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनावों में टिकट नहीं दिए थे वो भी इस बगावती तेवरों का फायदा उठाने की कोशिस में नज़र आ रहें हैं. मंडी संसदीय क्षेत्र से संबंध रखने वाले ऐसे सभी नेताओं ने पंडोह में अपनी एक बैठक का आयोजन किया और लोकसभा चुनावों को लेकर आगामी रणनीति तैयार की. यह बैठक द्रंग के पूर्व बीजेपी विधायक जवाहर ठाकुर के कहने पर बुलाई गई थी. इसकी अध्यक्षता पूर्व में सरकाघाट से रहे बीजेपी के विधायक कर्नल इंद्र सिंह ने की. बैठक में किन्नौर से रहे बीजेपी के पूर्व विधायक तेजवंत नेगी, आनी से पूर्व विधायक किशोरी लाल, एचपीएमसी के चेयरमैन रहे कुल्लू से राम सिंह, पूर्व सांसद महेश्वर सिंह के बेटे हितेश्वर सिंह, पूर्व प्रदेश सचिव व मीडिया प्रभारी रहे मंडी से प्रवीण शर्मा और सुंदरनगर से पूर्व में मंत्री रहे रूप सिंह ठाकुर के बेटे अभिषेक ठाकुर शामिल हुए. कर्नल इंद्र सिंह और जवाहर ठाकुर को छोड़कर बाकी सभी 2022 में बीजेपी से टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़े थे. इन सभी ने एक लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे.

उपचुनाव वाली छह विधानसभा सीटों में से पांच 2019 के आम चुनावों में बीजेपी उम्मीदवारों द्वारा जीते गए दो लोकसभा क्षेत्रों के भीतर आती हैं. राजनीतिक विश्लेषक हिमाचल प्रदेश की राजनीति में जनभावना की भूमिका पर जोर देते हुए मान रहें हैं कि ये बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है और उसे सावधान हो जाना चाहिए.