पटना: इन दिनों बिहार की राजनीति का केंद्र बिंदु उपेंद्र कुशवाहा बन गए है। राजद और जदयू के बीच क्या डील हुई यह तो राजनीति के अंदरखाने में ही कैद हो कर रह गई। लेकिन उपेंद्र कुशवाहा ने भाजपा से नजदीकियों का एक नया रास्ता जरूर खोल दिया है। यह रास्ता आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को ध्यान में रख कर काफी महत्वपूर्ण हो गया है। यह स्थिति अगर भाजपा के अनुकूल हुई तो वो राज्य में एलायंस की एक नई भूमि तैयार कर सकती है। वैसे भी भाजपा और उपेंद्र कुशवाहा के बीच पुराने संबंधों की लकीर अभी मिटी नहीं है, यूं कहिए कि फिर से ताजी होती दिख रही है।
कुशवाहा ने ऐसे छेड़ दी जंग-ए-सियासत
दरअसल जब से जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह की ओर इशारा करते कहा कि पार्टी कमजोर हो गई है, इसका इलाज करना होगा। तभी से कुशवाहा जदयू के शीर्ष नेतृत्व के निशाने पर आ गए। बवाल तब बढ़ा जब सोशल साइट पर एक फोटो वायरल हुई जिसमें भाजपा के तीन प्रवक्ताओं से उपेंद्र कुशवाहा बात करते नजर आ रहे थे। यह तस्वीर दिल्ली एम्स की थी और वे तीन प्रवक्ता थे प्रेम रंजन पटेल, संजय टाइगर और योगेंद्र पासवान। हालांकि कुशवाहा और भाजपा के तीनों प्रवक्ताओं ने कहा कि यह औपचारिक मुलाकात थी। लेकिन इस मुलाकात के बाद जो जदयू की राजनीति में गर्मा-गर्मी शुरू हो गई। कहीं न कहीं यह माना जा रहा है कि इस सीन की स्क्रिप्ट भाजपा के किसी दमदार नेता ने लिखी।
दो-दो हाथ करने को तैयार उपेंद्र कुशवाहा
मिली जानकारी के अनुसार उपेंद्र कुशवाह ने आगामी लोकसभा चुनाव में अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी है। इतना तो तय है कि उनका राजनीतिक सफर अब जदयू के साथ नहीं चलने जा रहा है। जदयू में उनका वही हश्र होगा जो या तो शरद यादव का या फिर आरसीपी सिंह का हुआ। उन्हें भी यूं ही छोड़ दिया जायेगा और वे एक दिन स्वयं पार्टी छोड़ देंगे। उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी राजनीतिक जीवन में एक बड़ी भूल कर दी कि उन्होंने अपनी पार्टी का विलय जदयू के साथ कर दिया। आज अगर वो रालोसपा के साथ बतौर एलायंस के रूप में महागठबंधन से जुड़ते तो वे आराम से गठबंधन तोड़ अलग हो जाते। अब उनके पास दो ही विकल्प बचा है या तो वे भाजपा ज्वाइन करें या एक पार्टी बनाकर एनडीए के एक और गठबंधन दल के रूप में शामिल हों।
भाजपा की भूमिका क्या होगी?
भाजपा की भूमिका का अंदाजा तो प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के उस बयान से लगाना चाहिए जिसने उन्होंने कहा था कि वे ऐसे हर राजनेता का स्वागत करेंगे जिन्होंने 1990 से 2005 के बीच जंगल राज के विरुद्ध राजनीतिक लड़ाई लड़ी है। एक तरह से कहा जा सकता है कि भाजपा की तरफ से उपेंद्र कुशवाहा को खुला आमंत्रण है। मगर भाजपा भी इनका व्यक्तिगत मूल्यांकन जरूर करेगी। कुशवाहा जदयू से अलग होते है तो वो कितने विधायकों या नेताओं को अपने साथ ला सकते हैं, इस पर बीजेपी में चर्चा जरूर होगी। ये भी तय मानिए कि जदयू से जितनी हिस्सेदारी कुशवाहा लेकर आएंगे उनकी भूमिका बीजेपी में उतनी ही बड़ी होगी।