उत्तराखंड में फ्री टैबलेट देने में लापरवाही, डायरेक्टर पर फूटा CM धामी का गुस्सा

इस खबर को शेयर करें

देहरादून. उत्तराखंड सरकार के अफसरों के पास यह डेटा फिलहाल नहीं है कि कितने स्टूडेंट्स को योजना के तहत मुफ्त टैबलेट दिया जा चुका है और कितने वंचित हैं. राज्य में 11वीं और 12वीं के ढाई लाख से ज्यादा स्टूडेन्ट्स को फ्री टैबलेट देने का प्लान (Free Tablet Plan) बनाया गया था, जो शिक्षा विभाग के चंद अधिकारियों की वजह से प्रभावित हुआ है. चुनाव से कुछ महीने पहले सीएम पुष्कर धामी ने इस योजना की शुरुआत की थी. अब इस योजना में ढीले रवैये पर नाराज़गी जताते हुए सीएम ने शिक्षा निदेशक (Director Education Department) को हटा दिया है. विभाग की गड़बड़ी से स्टूडेंट्स पढ़ाई प्रभावित होने की बात कह रहे हैं.

11वीं के छात्र आशु की बात हो या 12वीं की स्टूडेंट मानसी जोशी की, कई स्टूडेंट्स बता रहे हैं कि उन्हें टैबलेट न मिल पाने से उनकी पढ़ाई प्रभावित हुई और हो रही है. खास तौर से ऑनलाइन पढ़ाई में दिक्कतें पेश आ रही हैं. इधर, प्रिंसिपल एसोसिएशन (Principal Association) के अध्यक्ष सुरेंद्र बिष्ट का कहना है कि सभी स्टूडेंट्स को टैबलेट नही मिल पाए हैं क्योंकि कुछ के बैंक खातों में तकनीकी खामी के चलते सीधे पैसे डालने में दिक्कत आई. दूसरी तरफ शिक्षा विभाग के डीजी बंशीधर तिवारी ने साफ कहा कि सभी स्कूलों को पैसे जारी कर दिए गए. इन बयानों के बीच कहीं दर्ज नहीं है कि कितने स्टूडेंट्स तक योजना के तहत टैबलेट पहुंच सके.

कैसे छात्रों तक पहुंचने थे टैबलेट?
जनवरी में सीएम धामी ने 11वीं व 12वीं के स्टूडेंट्स के लिए फ्री टैबलेट का फैसला किया था. इसके लिए हर स्टूडेंट के बैंक खाते में 12 हजार रुपये भेजे जाने थे. कई मामलो में स्टूडेंट की जगह प्रिंसिपल के खाते में पैसा चला गया. 2 लाख 75 हजार स्टूडेंट्स के लिए शुरू हुई इस योजना के अंतर्गत टैबलेट में कोर्स अपलोड है, ताकि ऑनलाइन क्लास आसानी से हो सके. कुछ स्टूडेंट्स तो स्कीम का फायदा ले सके लेकिन कई छूट गए.

अब फ्री किताबों ही मिलेंगी उनके लिए पैसा नहीं
उत्तराखंड में 4 साल बाद सरकारी स्कूलों में अब क्लास 1 से 12 तक के स्टूडेंट्स को फ्री बुक्स मिलेंगी. साथ ही, मिड डे मील के मेन्यू में दूध को फिर से शामिल किया गया है. सभी स्टूडेंट्स को बुक्स देने का प्लान डीबीटी के ज़रिये आई दिक्कतों के बाद लिया गया. कुछ स्टूडेंट्स के पैरेंट्स किताबें खरीदते ही नही थे और उन पैसों को निजी कामों में इस्तेमाल करते थे. वहीं, कोविड में भी स्टूडेंट्स को दिक्कतों का सामना करना पड़ा. डीजी एजुकेशन का कहना है कि 1 अप्रैल से सभी स्टूडेंट्स को स्कूल में ही बुक्स दी जाएंगी.