लखनऊ. प्रदेश में दंगा, उपद्रव, विरोध प्रदर्शन, बंद और हड़ताल के दौरान किसी व्यक्ति की मौत होने पर उनके परिजन को पांच लाख रुपये और दिव्यांग होने पर न्यूनतम एक लाख रुपये का मुआवजा दंगाइयों और उपद्रवियों से वसूल करके दिया जाएगा। उपद्रवी या दंगाई को अपनी सफाई में यह कहने का अधिकार भी नहीं होगा कि मृतक या घायल व्यक्ति भी इसके लिए जिम्मेदार था। शुक्रवार को विधानमंडल के दोनों सदनों में उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली (संशोधन) विधेयक – 2022 पारित किया गया।
विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने विधेयक को प्रस्तुत करते हुए बताया कि 2020 में उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम 2020 पारित किया गया था। इसे कुछ संसोधन के साथ पुन: सदन में प्रस्तुत किया है। उन्होंने बताया कि दावा प्राधिकरण को मौत या दिव्यांगता पर मुआवजा राशि बढ़ाने का अधिकार भी होगा।
उन्होंने बताया कि सरकारी संपत्ति के क्षतिग्रस्त होने पर कार्यालयाध्यक्ष, निजी संपत्ति क्षतिग्रस्त होने पर संपत्ति मालिक या उनके न्यासी, व्यक्ति की मौत होने पर उनके आश्रित और दिव्यांगता होने पर पीड़ित व्यक्ति स्वयं दावा प्राधिकरण के समक्ष मात्र न्यायालय फीस स्टांप के रूप में 25 रुपये के शुल्क के साथ दावा कर सकेंगे। पहले दावा करने की अवधि घटना की तिथि से तीन महीने तक थी, जिसे अब बढ़ाकर तीन वर्ष किया है। दावा अधिकरण याचिका दाखिल करने में हुए विलंब को माफ भी कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि किसी व्यक्ति की मौत या दिव्यांग होने पर दावा अधिकरण की ओर से दोषी ठहराए गए दंगाई या उपद्रवी को मुआवजा की राशि तीस दिन के अंदर जमा करानी होगी। दावा अधिकरण स्वत: संज्ञान लेकर भी मामले को दर्ज कर सकेगा।
लंबित मामलों में भी लागू होगा विधेयक
सुरेश खन्ना ने कहा कि दावा अधिकरण में लंबित मामलों में भी संशोधित विधेयक के प्रावधान लागू कर उन्हें आगे बढ़ाया जाएगा।
दिव्यांगता के दायरे में ये आएंगे
– नेत्र दृष्टि, कान की श्रवण शक्ति का स्थायी रूप से समाप्त होने, किसी अंग या जोड़ का शरीर से अलग होना।
– शरीर के किसी अंग या जोड़ की शक्ति समाप्त होना या उसमें स्थायी कमी होना।
– सिर या चेहरे पर स्थायी क्षतिग्रस्त होना।
प्रवर समिति को सौंपा जाए मामला
बसपा विधायक दल के नेता उमाशंकर सिंह और कांग्रेस विधायक दल की नेता आराधना मिश्रा मोना ने उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली (संशोधन) विधेयक – 2022 को प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव रखा। उमाशंकर सिंह ने कहा सरकार ने 2020 में विधेयक पारित कराया था, दो साल बाद अब पुन: संशोधित विधेयक पेश किया जा रहा है। इसलिए अब विधेयक में कोई कमी नहीं रहे इसलिए विधेयक को प्रवर समिति को भेजा जाना उचित रहेगा।
संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि 2011 में बसपा सरकार ने ही इसका शासनादेश जारी किया था, जिसे सरकार ने विधेयक के रूप में पेश किया है। उन्होंने कहा कि बिल का सरलीकरण कर और दायरा बढ़ाकर उसे संशोधित विधेयक के रूप में पेश किया है। सदन में ध्वनिमत से बिल को प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव निरस्त किया गया।