पप्पू यादव ने अकेले लालू-तेजस्वी यादव को हिला डाला, देशभर में पूर्णिया लोकसभा की चर्चा

Pappu Yadav alone shook Lalu-Tejashwi Yadav, discussion of Purnia Lok Sabha across the country
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पटना/पूर्णिया: लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान शुक्रवार को खत्म हो गया। बिहार की पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार, बांका और भागलपुर सीट पर दूसरे चरण में वोट डाले गए। इनमें सबसे अधिक चर्चा में पूर्णिया सीट रही। पूर्णिया में एनडीए ने जेडीयू के संतोष कुशवाहा पर तीसरी बार दांव लगाया है तो इंडी अलायंस ने आरजेडी की बीमा भारती को मैदान में उतारा। सबसे दिलचस्प राकेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की उम्मीदवारी रही। निर्दलीय के रूप में पप्पू ने चुनाव लड़ा। उनकी मैदान में मौजूदगी महज सिंबॉलिक नहीं थी, बल्कि उन्होंने लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया था। पप्पू जीतें या हारें, पर कई कारणों से पूर्णिया के चुनाव को उन्होंने राष्ट्रीय फलक पर खड़ा कर दिया है।

कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय लड़ गए पप्पू
पप्पू यादव कांग्रेस के टिकट पर पूर्णिया से चुनाव लड़ना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने आनन-फानन अपनी जन अधिकार पार्टी का विलय भी कांग्रेस में इसी उद्देश्य से किया। पप्पू दावा करते रहे कि उन्हें राहुल गांधी और प्रियंका का आशीर्वाद मिला हुआ है। नामांकन की घोषित तिथि भी उन्होंने दो दिन इसीलिए टाल दी थी कि कांग्रेस उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर देगी। पर टिकट बंटवारे में चली आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव की। उन्होंने पूर्णिया सीट से पहले ही अपनी उम्मीदवार बीमा भारती को सिंबल दे दिया। बिहार में आरजेडी के सहारे अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही कांग्रेस ने नैतिकतावश चुप्पी साधने में ही भलाई समझी। तब पप्पू के सामने निर्दलीय चुनाव लड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। वे पूर्णिया में चुनाव प्रचार का काम इतना बढ़ा चुके थे कि बैकफुट पर आना उनके लिए घातक होता। जब उन्होंने निर्दलीय पर्चा दाखिल कर दिया तो लड़ाई सीधी के बजाय त्रिकोणीय हो गई।

दलीय बंदिश के कारण पत्नी रंजीता प्रचार न कर सकीं
पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य हैं। कांग्रेस ने पप्पू की उम्मीदवारी से जब पल्ला झाड़ लिया तो उनकी पत्नी रंजीता के सामने धर्मसंकट की स्थिति पैदा हो गई। अगर वे पति के लिए प्रचार में उतरतीं तो इससे गठबंधन धर्म का उल्लंघन होता। राहुल गांधी ने पप्पू की पगड़ी यह कह कर उछाल दी थी कि वे अपने और बेटे के लिए कांग्रेस का टिकट चाहते थे। पार्टी ने इसे मंजूर नहीं किया तो वे निर्दलीय उम्मीदवार बन गए। इसके बाद रंजीता रंजन के सामने एक ही रास्ता बचता था कि वे पप्पू के चुनाव प्रचार से दूर ही रहें। उन्होंने किया भी ऐसा ही। पप्पू ने अपने दम पर समीकरण बनाए। प्रचार किया और दोनों दलीय उम्मीदवारों जेडीयू के संतोष कुशवाहा और आरजेडी की बीमा भारती को कड़ी टक्कर दी। जिस तरह जनता का हुजूम उनके साथ दिखा, उससे एक बात तो साफ ही हो गई कि पप्पू ने लालू के मुस्लिम-यादव (M-Y) समीकरण में सेंध लगा दी। उनके साथ चुनाव प्रचार में हर वर्ग और जाति-मजहब के लोग दिखे। परिणाम चाहे जो हो, पर पप्पू ने पूर्णिया को तो राष्ट्रीय सुर्खियों में बना ही दिया।

तेजस्वी को एनडीए के लिए वोट की अपील करनी पड़ी
सबसे दिलचस्प यह रहा कि आरजेडी नेता और बिहार के पूर्व डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव ने पूर्णिया में पूरी ताकत झोंक दी। आरजेडी के तीन दर्जन से अधिक विधायकों ने पूर्णिया में डेरा डाल दिया। खुद तेजस्वी दो बार पूर्णिया गए। सबसे मजेदार बात यह रही कि तेजस्वी ने पप्पू का प्रचार देख अपने समर्थकों से अपील कर दी कि आप इंडी अलायंस के उम्मीदवार को अगर वोट नहीं करना चाहते हैं तो एनडीए को दे दीजिए, लेकिन पप्पू यादव को वोट देने से बचिए। इसके लिए तेजस्वी की किरकिरी भी खूब हुई कि वे एनडीए के लिए वोट मांग रहे हैं। दरअसल तेजस्वी यादव M-Y समीकरण वाले वाटरों पर अपना एकाधिकार समझते हैं। पर, उन पर आरजेडी का एकाधिकार कितना है, यह तो अब चार जून को पता चलेगा, जब ईवीएम के वोटों की काउंटिंग होगी।

बागी बन कर ‘इंडिया’ उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दी
कांग्रेस से बागी होकर पप्पू यादव ने चुनाव लड़ा, लेकिन अभी तक कांग्रेस ने उनके खिलाफ दलीय अनुशासन तोड़ने की कोई कार्रवाई नहीं की है। संभव है कि यह कांग्रेस की कोई रणनीति रही हो। बहरहाल पप्पू ने अपने सामाजिक जीवन की अर्जित कमाई को इस बार दांव पर लगा दिया है। पप्पू पास होंगे या फेल, यह तो अब ईवीएम में कैद हो चुका है, पर बिहार में आरजेडी का समीकरण बिगाड़ने में वे कामयाब रहेंगे, इतना तो तय माना जा रहा है। उन्होंने न सिर्फ पूर्णिया के यादव वोटरों को यह संदेश दिया कि लालू यादव कैसे यादवों के विरोधी हैं। मुस्लिम मतदाताओं को भी लालू के झांसे से बाहर निकलने का रास्ता पप्पू ने प्रशस्त कर दिया है। आने वाले समय में यादवों और मुसलमानों का रुझान बदल जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। जिस तरह देवेंद्र यादव ने पप्पू को नैतिक समर्थन दिया और मुसलमान उनके प्रचार में शरीक रहे, उससे आरजेडी के पारंपरिक मुस्लिम-यादव समीकरण में बिखराव तय माना जा रहा है। अशफाक करीम जैसे सीमांचल के मुस्लिम नेता तो वैसे भी लालू से बिदके हुए हैं।

पप्पू पास हुए तो ओमप्रकाश यादव का रिकॉर्ड तोड़ेंगे
अब सवाल उठता है कि पप्पू पास होंगे या फेल? अगर वे जीत जाते हैं तो तो वे सिवान से 2009 में निर्दलीय निर्वाचित ओमप्रकाश यादव का रिकार्ड तोड़ देंगे। शहाबुद्दीन के जेल में रहते उनकी पत्नी हिना शहाब ने आरजेडी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था। जेडीयू ने वृषिण पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया था। पलड़ा हिना शहाब की ओर झुका हुआ था, लेकिन निर्दलीय मैदान में उतर कर ओमप्रकाश यादव ने हिना और पटेल को मात दे दी थी। बाद में ओमप्रकाश ने भाजपा के टिकट पर 2014 का भी चुनाव जीता।