अभी-अभी: मुजफ्फरनगर की राजनीति में बड़ा फेरबदल समाजवादी पार्टी में शामिल हुए कादिर राणा, अखिलेश यादव ने

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मुजफ्फरनगर। जिले की बड़े मुस्लिम नेता बसपा के पूर्व सांसद कादिर राना रविवार को 17 साल बाद सपा में शामिल हो गये। वार्ड सभासद से सांसद तक का राजनीति सफर करने वाले कादिर रालोद से विधायक, बसपा से सांसद बने। शनिवार को वो लखनऊ के निकल गए। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के समक्ष रविवार दोपहर 12 बजे उन्होंने सपा की सदस्यता ली।

जिले के लोहा उद्यमी गांव सूजडू निवासी कादिर राना ने राजनीति की शुरूआत 1988 में नगर पालिका के सभासद के चुनाव से की थी। वह वार्ड संख्या 26 से सभासद निर्वाचित हुए थे। सभासद बनने के बाद कादिर ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन की। सपा नेता के रूप में उन्होंने एक बड़ी पहचान बनाने का काम किया और वह मुलायम सिंह यादव का विश्वास हासिल करने में सफल रहे। उन्होंने सपा में जिलाध्यक्ष का दायित्व भी निभाया। 1998 में मुलायम सिंह यादव ने उनको विधान परिषद में भिजवाया। इससे पहले सपा ने साल 1993 में राम लहर वाले विधानसभा चुनाव में कादिर राना को सदर सीट से प्रत्याशी बनाकर उतारा। पूरी तरह से ध्रुवीकरण के इस चुनाव में उन्होंने 72 हजार से भी ज्यादा वोट हासिल किये, लेकिन भाजपा के सुरेश संगल से वह पराजित हो गये।

इसके बाद वह सपा में समर्पित होकर कार्य करते रहे। 2004 के लोकसभा चुनाव में कादिर सपा से मजबूत दावेदार बने, लेकिन उनके स्थान पर मुजफ्फरनगर से सपा ने मुनव्वर हसन को टिकट दिया। राजनीतिक उपेक्षा के चलते उन्होंने सपा को छोड़ दिया और रालोद के टिकट पर 2007 में मोरना से विधानसभा का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उनको जीत मिली। इसके बाद 2009 में उन्होंने बसपा का दामन थामा तो मायावती ने उनको मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में कादिर राना दलित-मुस्लिम के साथ पिछड़ों के बल पर जीत गए। 2014 के चुनाव में बसपा ने उनको फिर से मैदान में उतारा, लेकिन इस चुनाव में मोदी लहर के कारण वह भाजपा के डॉ संजीव बालियान के सामने बुरी तरह हार गये, भाजपा रिकार्ड मतों से जीती। 2017 के चुनाव में बसपा ने उनकी पत्नी सईदा बेगम को बुढ़ाना विधानसभा सीट से टिकट दिया। इस चुनाव में मुस्लिमों के सपा के पीछे लामबंद हो जाने से वह मुख्य मुकाबले से ही बाहर हो गई। इस सीट को भाजपा के उमेश मलिक ने जीत लिया।