करनाल में जमीन ऊपर उठने की सामने आई असली वजह, किसान ने ही कर रखी थी गलती

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करनाल। कुचपुरा गांव में खेती की जमीन की जिस जमीन पर उथल-पुथल हुई, उसकी जांच करने के लिए केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान की दो सदस्यीय टीम मौके पर पहुंची। टीम में शामिल डा. परविंद्र श्योराण व डा. एके राय ने मौके पर पहुंचकर गहनता से जांच पड़ताल की। इस संदर्भ में संबंधित किसान नफेसिंह से भी बातचीत की। टीम ने संस्थान के निदेशक डॉ. पीसी शर्मा को इस बारे में रिपोर्ट दी।

क्या है मामला

गांव कुचपुरा के किसान ने फसल की कम पैदावार देने वाले अपने एक एकड़ खेत से मिट्टी की गहरी खोदाई करवाई थी, जिसे राइसमिल की राख से भरा गया। उसके ऊपर एक से डेढ़ फुट मिट्टी की परत डाली गई। फिर धान की फसल रोपी गई। 13 जुलाई को हुई बरसात के बाद अधिक जलभराव हो गया। इसके बाद खेत में अचानक मोटी दरारें फट गईं। खेत का पानी नीचे चला गया और जमीन में उफान आने से टीले में तब्दील हो गई। यह घटना इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो गई और इसे देखने के लिए लोग पहुंचने लगे।

टीम की छानबीन में यह बात आई सामने

टीम की मौके पर की गई छानबीन के बाद यह बात सामने आई है कि यह कोई भू-गर्भीय घटना नहीं है। दरअसल जिस जमीन पर यह घटना हुई है, उसका आस-पास के सभी खेतों से काफी निचला स्तर है। किसान ने जमीन का लेवल ऊपर उठाने के लिए राइस मिल की राख को डाल दिया और इसके ऊपर एक फीट मिट्टी की परत भी डाल दी। लगातार तीन दिन तक बरसात हुई। इसी बीच आसपास के खेतों का पानी भी किसान नफेसिंह की जमीन में एकत्रित हो गया।

इस तरह जमीन के नीचे बना पानी का दबाव

विशेषज्ञों ने बताया कि जब पानी मिट्टी के नीचे बिछाई गई राख तक गया तो वह उसे सोख नहीं पाई। राख की परत ने पानी और जमीन के नीचे के भाग को लोक कर दिया। पानी जमीन के अंदर समा नहीं पाया। इससे पानी का दबाव इतना बढ़ गया कि जमीन में दरारें आनी शुरू हो गई। पहले एक तरफ से भूमि का टुकड़ा पलट गया। उसके बाद धीरे-धीरे करीब एक एकड़ के इस क्षेत्रफल में मिट्टी काफी उथल-पुथल हो गई। विज्ञानी डा. एके राय व डा. परविंद्र श्योराण ने कहा कि यह कोई प्राकृतिक घटनाक्रम नहीं है।

इस तरह के प्रयोगों से बचें किसान

केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. पीसी शर्मा ने कहा कि दो विज्ञानियों को कुचपुरा गांव में जांच के लिए भेजा था। यह कोई प्राकृतिक घटना नहीं है। किसानों को इस प्रकार के प्रयोगों से बचना चाहिए। अपने स्तर पर ही कोई भी प्रयोग न करें। इससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है।