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जयपुर। राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के लिए 11 तारीख का काफी महत्व है। यह वही आंकड़ा है, जिन दिन पायलट के सिर से उनके पिता का हाथ उठ गया था। 11 ही वह आंकड़ा है, जिस दिन वह अनशन पर बैठे थे। 11 वही आंकड़ा है, जिस दिन उन्होंने अजमेर से जन संघर्ष आया शुरू की थी। 9 जून को उनके आवास पर हुई बैठक में उन्होंने कहा था कि 11 को वह कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। आखिर इस 11 यानी 11 जून को क्या बड़ा फैसला पायलट ले सकते हैं, आइए समझते हैं…
यह है पूरा मामला
राजस्थान में सचिन पायलट और उनके समर्थक पिछले 4 साल 7 महीने से निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। कभी मानेसर होटल में तो कभी सड़क पर। लेकिन अब समय आ गया है, जब सचिन पायलट कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। इसके संकेत पायलट ने 9 मई को अपने आवास पर हुई प्रेस कांफ्रेंस में दिए थे। पायलट ने कई बार कहा कि अब समय आ गया है पर किस बात का समय आया है वो पायलट ने नहीं बताया।
हालांकि, पायलट के इस बयान पर जानकार कहते हैं कि पायलट अपना मन बना चुके हैं और सड़क पर उतरकर अपने साथ जनता की नब्ज टटोल रहे हैं। पायलट के साथ रणनीतिकार भी जुड़ चुके हैं, जो पायलट को पल-पल गाइड कर रहे हैं। इसी क्रम में पायलट ने 11 तारीख को चुना है। 11 अप्रैल को पायलट अनशन पर बैठे थे, 11 मई को अजमेर से यात्रा की शुरुआत की और अब सूत्र बता रहे हैं कि 11 जून को पायलट अपने राजनीतिक जीवन का एक बड़ा फैसला लेने जा रहे हैं।
11 जून को पिता की जयंती
सूत्रों की मानें तो पायलट ने 11 जून को इसलिए भी चुना है, क्योंकि इसी दिन सचिन के पिता राजेश पायलट की जयंती है। 11 जून 2000 को एक सड़क हादसे में राजेश पायलट का निधन हो गया था। सचिन पायलट उस समय मात्र 22 साल के थे। सचिन पायलट ने 11 जून का दिन चुना है। पायलट 11 को अपने राजनीतिक करियर में एक नई दिशा दे सकते हैं।
सचिन पायलट के पास मौजूद विकल्प
सचिन पायलट को निरंतर आप से बुलावा आ रहा है। आप राजस्थान में अपने पैर जमाने के लिए पायलट को बैसाखी बना सकती है। सूत्रों के अनुसार, सचिन पायलट आप को चुनते हुए नजर नहीं आते हैं। कारण साफ है कि पायलट अब किसी और की सरपरस्ती में अपने राजनीतिक जीवन को आगे नहीं बढ़ाना चाहेंगे। जो कांग्रेस में हुआ वो कल पायलट के साथ आप में भी दोहराया जा सकता है।
दूसरा विकल्प हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी है, जिसके साथ पायलट हाथ मिला सकते हैं। परंतु यह समझौता ज्यादा नजर आता नहीं है। पायलट को लेकर निरंतर अटकलें लगाई जाती हैं कि वो भाजपा का दामन थाम सकते हैं। लेकिन सूत्र कहते है कि पायलट ने लंबी लड़ाई राजस्थान के मुख्यमंत्री के लिए लड़ी है। भाजपा में पायलट का यह सपना पूरा नहीं हो सकता।
भाजपा को नहीं कोई खास फायदा
सचिन पायलट अगर कांग्रेस को अलविदा कहते हैं तो उस सूरत में राजस्थान में पायलट अपना तीसरा विकल्प बना सकते है,जो आप और RLP के साथ गठबंधन कर सकता है। सचिन पायलट को राजस्थान में गुर्जर समर्थन मिला तो पायलट 25 सीट पर हार और जीत का फर्क दिखा सकते है। क्योंकि गुर्जर वोटर 30 सीट पर जीत तो नहीं पर संगठित होकर किसी भी उम्मीदवार के लिए हार का रास्ता जरूर बना सकते हैं। पायलट के फैसले से कांग्रेस को 30 सीट का नुकसान होना तय है। जबकि, भाजपा को जाने वाले गुर्जर वोट अगर पायलट को जाते हैं तो भाजपा को भी कोई खास फायदा होता नजर नहीं आता है।