100 साल तक जीने का नुस्ख़ा क्या है? यहां जानिये

What is the recipe for living to 100 years? know here
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दुनिया में मुश्किलें हैं. बीमारियां हैं, युद्ध हैं, तनाव हैं, पैसे की किल्लत है. गरीबी है और रोज की मारामारी. ऐसे में लंबी उम्र जीने की बात करें तो हंसी में उड़ा दी जाती है. ऐसे में जब अख़बार, टीवी, वेबसाइट पर जब हम कुछ ऐसे लोगों के बारे में पढ़ते हैं जो खुशी खुशी 100 साल जी जाते हैं. सवाल उठता है – आखिर कैसे..? आखिर वो कौन सा सीक्रेट है, जिसकी बदौलत वो खुशी खुशी उम्र के इस पड़ाव तक पहुंच गए.

साल 2017 में इससे जुड़ी एक स्टडी सामने आई जिसमें इटली के सुदूर गांवों के 90 पार लोगों से बात की गई. पता चला कि इन सभी में एक ज़िद और फिर से खड़े होने का जज़्बा कूट कूट कर भरा था. “इंटरनेशनल सायकोगेरियाट्रिक्स” नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुई इस स्टडी में 29 बुजुर्ग गांववासियों की मानसिक-शारीरिक सेहत का जायज़ा लिया गया.

इनकी उम्र 90 से 101 साल के बीच थी. गौरतलब है कि इटली का सिलेंटो गांव जहां यह रिसर्च हुई थी, वह जगह 90 से ऊपर की उम्र के लोगों के लिए ही जानी जाती है.

मुश्किल दौर उम्र पर असर डालता है
मुश्किल दौर से निकलकर आगे बढ़ने का फैसला हमारी सेहत पर असर डालता है. इसका उदाहरण एमा मुरानो भी हैं जो दुनिया की सबसे बुजुर्ग महिला थीं. अप्रैल 2017 में उनका निधन हुआ. एमा ने 1938 में मुश्किलों से भरी अपनी शादी से अलग होने का फैसला लिया था.

उन्होंने कहा-शादी से निकलना लंबी उम्र का राज
“न्यू यॉर्क टाइम्स” को दिए एक इंटरव्यू में एमा ने कहा था ‘मैं नहीं चाहती थी कि कोई मुझे पर राज करे.’ उस शादी से बाहर निकलना ही एमा अपनी लंबी उम्र का राज़ मानती हैं. वैसे एमा की लंबी उम्र का राज़ उनकी डाइट भी थी. वह रोज़ दो कच्चे अंडे, और खूब सारी कुकीज़ खाया करती थीं. कुछ रिपोर्ट्स तो यह भी कहती हैं कि एमा कुकीज़ को अपने तकिये के नीचे छुपाकर भी रखती थीं.

सकारात्मकता, उसूल और दूसरे गुण
वैसे बुजुर्ग वयस्कों के कुछ और गुण भी मिलते हैं. जैसे सकारात्मकता, काम करने के सख्त उसूल और परिवार, देश और धर्म से मजबूत बंधन. ऊपर जिस शोध का जिक्र किया गया है उसमें हिस्सा लेने वाले ज्यादातर लोगों ने रोजमर्रा के काम करना छोड़ा नहीं है. शोधकर्मताओं का मानना है कि ऐसा करने से बढ़ती उम्र में भी जीवन में एक उद्देश्य रहता है.

मानसिक सेहत इन लोगों की अच्छी थी
रिसर्चर्स ने इन बुजुर्गों की उनसे कम उम्र (51-75) के सदस्यों से तुलना भी की थी. जाहिर तौर पर शारीरिक सेहत तो अधिक उम्र वालों की खराब थी लेकिन जहां तक मानसिक सेहत की बात है तो आत्मविश्वास और फैसले लेने के जौहर में 90 पार के लोगों ने बाजी मारी.

कम में संतुष्टि और खुशी
शायद उम्र के साथ यही विरोधाभास चलता है. शारीरिक सेहत कितनी भी क्यों न बिगड़े, मानसिक सेहत सुधरती जाती है. हम कम में संतुष्ट होना सीख जाते हैं. खुशी और संतुष्टि जैसी बातें ऊपर जाती हैं और तनाव तथा अवसाद कम होता जाता है. यह बात उन लोगों पर खासतौर पर लागू होती है जो 90 की उम्र को पार कर लेते हैं. यह दिलचस्प है कि बढ़ती उम्र को लेकर जो आम सोच है, 100 साल जीने वाले लोगों ने उसे नकारा ही है. बुढ़ापा अंधेरे से भरा हो जरूरी नहीं, यह सकारात्मक और दूसरों को प्रेरणा देने वाला भी हो सकता है.

अर्थव्यवस्था के लिए बोझ
वहीं इस बढ़ती उम्र का एक और पहलू भी है जो जापान जैसे देश में देखने को मिलता है. जापान उन देशों में सबसे ऊपर माना जाता है जहां 100 साल के बुजुर्गों की संख्या सबसे ज्यादा है. जापान में बुजुर्गों के सम्मान में 19 सितंबर को राष्ट्रीय अवकाश भी रखा जाता है. लेकिन इतने सारे लोगों का लंबी उम्र तक जीना देश की आर्थिक हालत को बिगाड़ भी सकता है. जानकारों का मानना है कि हालांकि जापान में बुजुर्गों की इज्जत की जाती है लेकिन उन पर संसाधन बहुत अधिक खर्च होते हैं.

जापान में 100 पार के लोगों को तोहफे
2016 के आंकडों के मुताबिक जापान में 65 हजार लोग ऐसे हैं जो 100 की उम्र पार कर चुके हैं. हर साल सौ पार बुजुर्गों को जापान में चांदी की थाली तोहफे में दी जाती है. ऐसे में जहां 1966 में देश को कुछ ही थालियां बांटनी होती थीं, वहीं 2014 तक आते आते इन तोहफों की संख्या हजारों में पहुंच गई. ऐसे में 2016 में सरकार ने तय किया कि चांदी की थाली की जगह किसी सस्ती तोहफे को दी जाएगी.

यह तो एक छोटा सा उदाहरण है. जापान बढ़ती उम्र की अपनी जनसंख्या की वजह से काफी बुरे दौर से गुज़र रहा है. जापान में एक के बाद एक दो पीढ़ियां रिटायरमेंट की उम्र में प्रवेश कर रही हैं. वहां बच्चे पैदा करने की दर कम होती जा रही है. ऐसे में अर्थव्यवस्था सिकुड़ती चली जा रही है. अर्थशास्त्रियों ने इसे ‘डेमोग्राफिक टाइम बम’ का नाम दिया है. इसके मुताबिक अगर जापान में युवाओं को बच्चा पैदा करने के लिए उत्साहित नहीं किया गया तो एक दिन यह देश पूरी तरह खत्म हो जाएगा.

लेकिन ये तय है कि लंबी उम्र का राज केवल एक बात में नहीं छिपा है. हालांकि ये नजर आता है कि शारीरिक सेहत से ज्यादा मानसिक सेहत और खुशी के साथ कम में संतुष्टि बहुत जरूरी है.