- बिहार में भीषण सड़क हादसा; 6 लोगों की मौत, 3 घायल - April 30, 2024
- बाबा रामदेव की फिर बढ़ी मुसीबत, इस मामले में पतंजलि को मिला कारण बताओ नोटिस - April 30, 2024
- बिल्ली की इस गलती से घर में लगी आग, लाखों का माल जलकर खाक, सच्चाई कर देगी हैरान - April 30, 2024
India-Thailand Highway: भारत-म्यांमार-थाईलैंड हाइवे प्रोजेक्ट (India-Myanmar-Thailand Highway Project) का काम लगभग 70 फीसदी पूरा हो चुका है. लेकिन अभी तक पूरा नहीं हो पाया है. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने इसका कारण बताया है और प्रोजेक्ट का बाकी काम पूरा होने की उम्मीद जताई है. विदेश मंत्री एसं जयशंकर ने कहा कि म्यांमार के हालात के कारण भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय हाइवे एक बहुत कठिन प्रोजेक्ट रही है और फिर से इसकी शुरुआत करने के तरीके ढूंढना सरकार की प्राथमिकता है. बता दें कि जयशंकर मेकोंग गंगा सहयोग (MCG) तंत्र के विदेश मंत्रियों की 12वीं मीटिंग में भाग लेने और बिम्सटेक (BIMSTEC) के विदेश मंत्रियों की सम्मेलन में भाग लेने के लिए थाईलैंड पहुंचे हैं.
क्या है भारत के सामने बड़ी चुनौती?
जान लें कि एस जयशंकर ने बैंकॉक पहुंचने के तुरंत बाद भारतीय समुदाय के लोगों से मुलाकात की और उन्हें संबोधित करते हुए थाईलैंड और भारत के बीच कनेक्टिविटी के बारे में बात की. एस जयशंकर ने कहा कि आज हमारे सामने असली चुनौती, जिस पर हम काम कर रहे हैं, वह है कि हम थाईलैंड के बीच सड़क कनेक्टिविटी कैसे बनाएं? हमारे पास पूर्वोत्तर भारत से होकर गुजरने वाला यह प्रोजेक्ट है, अगर हम म्यांमार से गुजरने वाली एक सड़क बनाते हैं और वह सड़क थाईलैंड की ओर से बनाई जाने वाली सड़क से जुड़ती है.
कनेक्टिविटी से क्या होगा फायदा?
उन्होंने कहा कि बेहतर सड़क कनेक्टिविटी से माल की आवाजाही, लोगों की आवाजाही में भारी बदलाव आएगा. विदेश मंत्री ने ये भी कहा कि लेकिन, यह बहुत कठिन प्रोजेक्ट रहा है. मुख्य रूप से म्यांमार के हालात के कारण ये एक बहुत ही कठिन प्रोजेक्ट रहा है. ये आज हमारी प्राथमिकताओं में से एक है कि इस प्रोजेक्ट को कैसे फिर से शुरू किया जाए, इसे कैसे चालू किया जाए और इसे कैसे बनाया जाए क्योंकि परियोजना के बड़े हिस्से का निर्माण किया जा चुका है.
थाईलैंड तक बना रहा 1400 KM लंबा हाइवे
गौरतलब है कि भारत, म्यांमार और थाईलैंड करीब 1,400 किलोमीटर लंबे हाइवे पर काम कर रहे हैं, जो तीनों देशों को जमीन के जरिए दक्षिण-पूर्वी एशिया से जोड़ेगा और तीनों देशों के बीच व्यापार, कारोबार, स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यटन संबंधों को बढ़ावा देगा.