मामा बनकर गरीब बेटी की शादी में पहुंचे, 9 तोला सोना, 1 किलो चांदी देकर निभाई ‘नरसी भात’ की रस्म

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ग्वालियर. शिवपुरी जिले के एजवारा गांव में एक गरीब बेटी की शादी देश में सुर्खियां बटोर रही है. खास बात ये है कि दुल्हन बनी इस बेटी के मामा नहीं थे. इसकी जानकारी मिलने पर नोएडा के एक कारोबारी ने शादी में आकर न सिर्फ मामा का फर्ज निभाया, बल्कि लाखों रुपये का भात भी दिया. उन्होंने शादी में दूल्हा-दुल्हन को करीब पांच लाख के जेवरात दिए. इनमें 9 तोला सोना और एक किलो चांदी शामिल है. उन्होंने दूल्हे को एक लाख कैश, स्मार्टफोन दिया. गांव की 350 महिलाओं के लिए साड़ियां और पुरुषों के लिए 100 जोड़ी पैंट-शर्ट दिए. उन्होंने बारात में आए सभी बारातियों को भी उपहार दिए. इस कारोबारी की तुलना ग्रामीण इलाकों में भगवान कृष्ण की कथा में वर्णित नरसी जी के भात से की जा रही है.

शिवपुरी जिले के बदरवास जनपद पंचायत के तहत आने वाले एजवारा गांव में रहने वाले थान सिंह यादव की बेटी की शादी 20-21 नवंबर को थी. शादी में मंडप के नीचे भात की रस्म होने वाली थी, लेकिन दुल्हन परेशान थी क्योंकि उसके कोई मामा नहीं थे. बारात और दूल्हा मंडप के नीचे आ चुके थे. भात की रस्म हो रही थी उसी दौरान नोएडा से गोविंद सिंघल नाम के कारोबारी परिवार के साथ गांव में पहुंचे. कारोबारी ने कहा कि वह दुल्हन के मामा का फर्ज निभाएंगे और भात देने के लिए आए हैं. भारत की रस्म शुरू हुई तो दुल्हन का परिवार खुश हो गया. वहीं बाराती और गांव वाले भी हैरान थे. सभी कारोबारी को फरिश्ता बता रहे थे.

कारोबारी ने सुन लिया था दुल्हन की मां का दुखड़ा
दुल्हन की मां का कोई भाई नहीं था. उसके नाना भी 30 साल पहले संन्यासी होकर चले गए थे. बेटी की शादी से पहले दुल्हन की मां ने अपने पिता को तलाशने की कोशिश की. उन्हें खबर मिली कि पिता उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर के जेवर कस्बे में साधु के रूप में रह रहे हैं. दुल्हन की मां और पिता उनको तलाशने गौतमबुद्ध नगर पहुंचे. यहां उन्होंने साधु के भेष में बैठे पिता से कहा कि उसकी बेटी की शादी है, भात की रस्म के लिए आपको आना पड़ेगा. लेकिन, संन्यासी पिता ने बेटी और दामाद को इनकार कर दिया.

संयोग से वहीं बैठे नोएडा के कारोबारी गोविंद सिंघल ने संन्यासी पिता और बेटी की बातचीत सुनी. उसके बाद उन्होंने दुल्हन की मां और पिता से परेशानी पूछी. तब उन्होंने सिंघल को बताया कि उनका कोई भाई नहीं है,, बेटी के लिए भात में मामा की रस्म कौन निभाएगा? कारोबारी सिंघल ने उनका पता, बेटी की शादी की तारीख ली और ये कहकर रवाना हो गए कि आप लोग घर जाइए भगवान सब अच्छा करेगा. उन्होंने उसी वक्त तय कर लिया था कि भात की रस्म वो अदा करेंगे. वो तय तारीख पर गांव पहुंचे और पूरी रस्म निभाई.

ग्रामीण नरसी भात की कथा से कर रहे तुलना
गोविंद सिंघल द्वारा करीब 10 लाख रुपये का भात दिया गया है. ग्रामीण इसकी तुलना भगवान कृष्ण की पौराणिक कथा नरसी भात से कर रहे हैं. दरसअल भक्त नरसी का मान रखने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने रुक्मणी के साथ स्वयं जाकर भात की परंपरा का पालन किया था. भगवान श्रीकृष्ण सांवरिया सेठ बनकर वहां पर पहुंचे और स्वयं को नरसी का मुनीम बताया. श्रीकृष्ण अपने साथ माता रुक्मणी को भी लेकर आए थे. उन्होंने एक-एक कर सभी को करोड़ों रुपये का भात ओढ़ाया. यह देखकर पूरे गांव वालों की आंखें फटी रह गईं. साथ ही भगवान ने ग्रामीणों को भी भात व उपहार दिए. भगवान श्री कृष्ण की यह लीला सदा के लिए अमर हो गई, क्योंकि वहां के लोगों ने चित्तौड़गढ़ में सांवरिया सेठ के नाम से भगवान श्री कृष्ण का मंदिर स्थापित किया. दुनिया भर के लोग सांवरिया सेठ के दर्शन करने पहुंचते हैं.