हरियाणा निकाय चुनाव में 92 प्रतिशत वार्डों पर निर्दलीयों का कब्जा, भाजपा के 60 सदस्य ही जीते

In Haryana civic elections, 92 percent wards were occupied by independents, only 60 BJP members won
In Haryana civic elections, 92 percent wards were occupied by independents, only 60 BJP members won
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चंडीगढ़: हरियाणा के 46 शहरी निकायों में निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। नगर परिषद और नगरपालिका चेयरमैन के 19 पदों पर जहां उन्होंने कब्जा किया, वहीं 887 वार्डों में से 815 वार्डों यानी 92 प्रतिशत में भी निर्दलीय पार्षद जीते हैं। भाजपा ने जिला व खंड इकाइयों पर वार्ड सदस्य उतारने का फैसला छोड़ा था।

पूरे निकायों में पार्टी ने 136 वार्डों में ही प्रत्याशी उतारे और सिंबल पर चुनाव लड़ा, इनमें से भाजपा के 60 सदस्य जीते। सरकार में गठबंधन सहयोगी जजपा ने वार्डों में प्रत्याशी नहीं उतारे थे। जजपा सिर्फ चार नगर परिषद और चार नगरपालिका में ही अधिकृत उम्मीदवार उतारकर चुनाव लड़ी। आम आदमी पार्टी ने 133 वार्डों में उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 5 जीते।

इनेलो ने 23 वार्डों में उम्मीदवारों को उतारा था, जिनमें से केवल 6 ही जीत पाए। बसपा 3 वार्डों में लड़ी और एक सदस्य ही जीता। सफीदों नगरपालिका के वार्ड-8 के पुनर्मतदान में भी निर्दलीय ही जीतेगा, क्योंकि पिंकी रानी और मधु रानी दोनों निर्दलीय उम्मीदवार हैं। इस तरह प्रदेश में कुल 816 निर्दलीय प्रत्याशी वार्ड सदस्य हो जाएंगे।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि वर्ष 2019 में प्रदेश विधानसभा ने हरियाणा म्युनिसिपल कानून, 1973 में संशोधन कर नई धारा-18 ए जोड़ी है। उस अनुसार सभी नगर निकायों के आम चुनावों में नवनिर्वाचित अध्यक्ष एवं वार्डों से चुने गए सदस्यों की राज्य चुनाव आयोग से निर्वाचन अधिसूचना जारी होने के अधिकतम छह माह में उपाध्यक्ष का चुनाव करवाना होगा। अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो छह माह की अवधि समाप्त होने पर संबंधित नगर परिषद या नगर पालिका को तत्काल प्रभाव से भंग समझा जाएगा। चुनाव नए सिरे से करवाने होंगे।

जनता ने करनाल में भाजपा और उचाना में जजपा को नकारा: उदय भान
हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उदय भान ने कहा कि कांग्रेस के खिलाफ बयानबाजी करने से पहले मुख्यमंत्री मनोहर लाल और उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को अपने हलकों में मंथन करना चाहिए, क्योंकि दोनों के यहां ही उनके प्रत्याशी हारे हैं। सत्ता में गठबंधन के बावजूद करनाल में भाजपा को और उचाना में जजपा को लोगों ने नकार दिया है। उदय भान ने कहा कि मुख्यमंत्री अपने जिले करनाल की असंध, निसिंग और तरावड़ी तीनों सीट हार गए और उप-मुख्यमंत्री तो अपने विधानसभा चुनाव क्षेत्र उचाना से ही हार गए।

इसके अलावा सरकार के कई मंत्री भी अपने हलकों में साम-दाम-दंड-भेद के बावजूद अपने प्रत्याशियों को नहीं जिता पाए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने सवाल किया कि क्या ये दोनों इस हार की नैतिक जिम्मेदारी लेने का साहस दिखाएंगे। उन्होंने कहा कि बीजेपी को यह नहीं भूलना चाहिए कि 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद बरोदा और ऐलनाबाद के विधानसभा के उपचुनाव हुए और सत्ता में रहते हुए भी भाजपा को दोनों ही जगह हार का स्वाद चखना पड़ा।
विस्तार
हरियाणा के 46 शहरी निकायों में निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। नगर परिषद और नगरपालिका चेयरमैन के 19 पदों पर जहां उन्होंने कब्जा किया, वहीं 887 वार्डों में से 815 वार्डों यानी 92 प्रतिशत में भी निर्दलीय पार्षद जीते हैं। भाजपा ने जिला व खंड इकाइयों पर वार्ड सदस्य उतारने का फैसला छोड़ा था।

 

पूरे निकायों में पार्टी ने 136 वार्डों में ही प्रत्याशी उतारे और सिंबल पर चुनाव लड़ा, इनमें से भाजपा के 60 सदस्य जीते। सरकार में गठबंधन सहयोगी जजपा ने वार्डों में प्रत्याशी नहीं उतारे थे। जजपा सिर्फ चार नगर परिषद और चार नगरपालिका में ही अधिकृत उम्मीदवार उतारकर चुनाव लड़ी। आम आदमी पार्टी ने 133 वार्डों में उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 5 जीते।

इनेलो ने 23 वार्डों में उम्मीदवारों को उतारा था, जिनमें से केवल 6 ही जीत पाए। बसपा 3 वार्डों में लड़ी और एक सदस्य ही जीता। सफीदों नगरपालिका के वार्ड-8 के पुनर्मतदान में भी निर्दलीय ही जीतेगा, क्योंकि पिंकी रानी और मधु रानी दोनों निर्दलीय उम्मीदवार हैं। इस तरह प्रदेश में कुल 816 निर्दलीय प्रत्याशी वार्ड सदस्य हो जाएंगे।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि वर्ष 2019 में प्रदेश विधानसभा ने हरियाणा म्युनिसिपल कानून, 1973 में संशोधन कर नई धारा-18 ए जोड़ी है। उस अनुसार सभी नगर निकायों के आम चुनावों में नवनिर्वाचित अध्यक्ष एवं वार्डों से चुने गए सदस्यों की राज्य चुनाव आयोग से निर्वाचन अधिसूचना जारी होने के अधिकतम छह माह में उपाध्यक्ष का चुनाव करवाना होगा। अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो छह माह की अवधि समाप्त होने पर संबंधित नगर परिषद या नगर पालिका को तत्काल प्रभाव से भंग समझा जाएगा। चुनाव नए सिरे से करवाने होंगे।