सजा नहीं होती तब भी जाने वाली थी राहुल गांधी की लोकसभा की सांसदी, जानें कैसे

Rahul Gandhi's Lok Sabha MP was going to go even if there was no punishment, know how
Rahul Gandhi's Lok Sabha MP was going to go even if there was no punishment, know how
इस खबर को शेयर करें

Rahul Gandhi Disqualified: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की सांसदी चली गई है. यह राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका है. कांग्रेस राहुल गांधी की सजा और उसके बाद लोकसभा की सदस्यता छिन जाने से आंदोलित होने जा रही है. संसद से सड़क तक कांग्रेस ने हल्ला बोल की रणनीति अपनाई है. गुजरात की कोर्ट से सजा को अगर आगे की अदालतों से स्टे नहीं मिला तो राहुल गांधी अगले 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. इस तरह यह उनके लिए बहुत बड़ा झटका है. एक तथ्य यह भी है कि अगर गुजरात की कोर्ट से सजा नहीं भी होती तो राहुल गांधी की लोकसभा सांसदी को खतरा पहले से ही था और उनकी सदस्यता जाने वाली थी. अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि यह कैसे. आइए हम आपको बताते हैं.

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर गौतम अदानी के साथ संबंध होने के आरोप लगाए थे. राहुल गांधी पर आरोप लगा कि उन्होंने नियम 353 और 369 का उल्लंघन किया. नियम 353 कहता है कि सदन जो सदस्य मौजूद नहीं हो, उसके खिलाफ आरोप नहीं लगाए जा सकते. क्योंकि तब वह अपना बचाव नहीं कर सकता है. वहीं नियम 353 कहता है. यही नियम कहता है कि किसी सदस्य को दूसरे सदस्य के खिलाफ आरोप लगाने से पहले लोकसभा सचिवालय को जानकारी देनी होती है और लोकसभा अध्यक्ष से अनुमति लेनी होती है. इसके अलावा एक नियम 369 कहता है कि कोई सदस्य अगर सदन में कोई कागज दिखाए तो उसे उसकी सत्यता का प्रमाण पेश करना होता है. संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी और सांसद निशिकांत दुबे ने इन सब नियमों की अवहेलना के लिए राहुल गांधी को विशेषाधिकार हनन का नोटिस भेजा था. जानकारों का कहना है कि इसमें अगर सदस्य दोषी पाया जाता है तो उसकी सांसदी जा सकती है. इसमें लोकसभा अध्यक्ष को तय करना था कि वे मामले को विशेषाधिकार हनन समिति के पास भेजें या फिर खुद ही सुनवाई करते. समिति को भेजने से पहले उन्हें विभिन्न दलों के वरिष्ठ नेताओं की समिति का गठन करना पड़ता. यही समिति तय करती कि राहुल गांधी पर किस तरह की कार्रवाई की जाए. हालांकि बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे पहले दिन से इस मामले में राहुल गांधी की सदस्यता वापस लिए जाने की मांग कर रहे थे.

दूसरा मामला विदेशों में दिए गए राहुल गांधी के बयान को लेकर है. इस मामले में भी लोकसभा स्पीकर को लिखे गए पत्र में राहुल गांधी के आचरण को विशेषाधिकार समिति से जांच कराने की मांग की थी. सांसद दुबे ने स्पीकर को लिखे पत्र में कहा, सदन को विचार करना चाहिए कि ऐसे व्यक्ति की सदस्यता खत्म करना चाहिए या नहीं ताकि संसद और अन्य लोकतांत्रिक संस्थानों की रक्षा की जा सके. दुबे ने यह भी कहा कि एक स्पष्ट संदेश दिए जाने की जरूरत है कि आगे से कोई भी उच्च संस्थानों के गौरव और सम्मान से खिलावाड़ न कर सके.

आजादी के बाद ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जिसमें संसद के सदस्यों को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी. आजादी के तुरंत बाद अस्थायी संसद के सदस्य कांग्रेस नेता एचजी मुद्गल पर संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने का आरोप लगा था. तब पीएम जवाहरलाल नेहरू ने मामले की जांच के लिए संसद की एक कमेटी बनाई थी और कमेटी ने मुद्गल को दोषी पाया और उनकी सदस्यता खत्म कर दी गई थी. हालांकि सदस्यता खत्म किए जाने से पहले मुद्गल ने इस्तीफा दे दिया था.

वहीं, आपातकाल के दौरान 1976 में तत्कालीन जनसंघ नेता सुब्रमण्यम स्वामी राज्यसभा सांसद थे. तब उन पर देशविरोधी प्रचार में शामिल होने और देश के महत्वपूर्ण संस्थानों को बदनाम करने के आरोप लगे थे. संसद की 10 सदस्यों की एक कमेटी बनाकर जांच कराई गई और 15 नवंबर 1976 को स्वामी को दोषी पाया और राज्यसभा से निष्कासित कर दिया गया. 1978 में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी पर भी विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना का आरोप लगा था. उन पर काम में बाधा डालने और कुछ अफसरों को धमकाकर और झूठे मुकदमे में फंसाने का आरोप लगाया गया था. 20 दिसंबर 1978 को उनकी संसद सदस्यता खत्म कर दी गई थी. इसके अलावा सत्र चलने तक उन्हें जेल भेजने का भी आदेश दिया गया था. हालांकि एक महीने बाद लोकसभा ने उनका निष्कासन वापस ले लिया था. 26 दिसंबर 1978 को इंदिरा गांधी को जेल से रिहा कर दिया गया था.

2005 में एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में कई पार्टियों के 11 सांसद संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेते नजर आए थे. इसमें लोकसभा के 10 और राज्यसभा के 1 सांसद थे. सांसदों के काम को भ्रष्ट और अनैतिक बताकर सांसद पवन कुमार बंसल के नेतृत्व में 5 सदस्यीय कमेटी बनाई गई. कमेटी में सांसद वीके मल्होत्रा, रामगोपाल यादव, मोहम्मद सलीम और सी. कुप्पुसामी शामिल थे. जांच में उन सांसदों को दोषी पाया गया और संसद में एक प्रस्ताव के जरिए उन सांसदों की सदस्यता छीन ली गई थी.