पाकिस्तान के खिलाफ जो प्रयोग सफल रहा, क्या उसे चीन के खिलाफ अपनाने का वक्त आ गया है?

The experiment which was successful against Pakistan, is it time to adopt it against China?
The experiment which was successful against Pakistan, is it time to adopt it against China?
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नई दिल्ली: युद्ध अकेले हथियारों से नहीं लड़े जाते, सही समय पर खुफिया जानकारी की बहुत बड़ी भूमिका होती है। 1971 की भारत और पाकिस्तान की जंग हो या उसके पहले और बाद में हुई मुठभेड़, भारत की इंटेलिजेंस हर बार सफल रही। कराची पर अटैक हो या पूर्वी पाकिस्तान में पाक की हरकतों के खिलाफ जंग का ऐलान, भारतीय फौज को पल-पल का इनपुट मिलता रहा। जब भी खुफिया एजेंसी का जिक्र होता है तो भारत की रॉ (RAW यानी Research and Analysis Wing) और पाकिस्तान की आईएसआई की खूब चर्चा होती है। लेकिन कम लोगों को पता होगा कि भारत की वाह्य खुफिया एजेंसी की स्थापना का मकसद वास्तव में चीन पर नजर रखना था। 1962 की लड़ाई के छह साल बाद चीन के प्रभाव को रोकने के लिए इसकी स्थापना हुई। लेकिन बदलते वक्त और पड़ोसी की एक के बाद एक हरकतों के मद्देनजर पूरा फोकस पाकिस्तान पर हो गया। हाल के वर्षों में डोकलाम, गलवान और अब तवांग में चीन के दुस्साहस को देख एक बार फिर से खुफिया सूचनाओं की बातें होने लगी हैं।

इंटेलिजेंस एजेंसी RAW क्यों बनी?
स्नूपिंग या जासूसी या इंटेलिजेंस इसके कई नाम हैं। आधिकारिक तौर पर कोई भी देश इसके तहत ऑपरेशन की बातें नहीं करता है। लेकिन दुश्मन की हर मूवमेंट पर नजर रखने के लिए और उसकी साजिश को नाकाम करने के लिए दुनिया के ज्यादातर बड़े देश इंटेलिजेंस एजेंसी बनाते हैं। पिछले दशकों में भारत और पाकिस्तान के कई खुफिया ऑपरेशन हुए हैं। कश्मीर को सुलगाने के लिए ISI ने क्या-क्या नहीं किया। लेकिन भारतीय खुफिया एजेंसी उस पर भारी पड़ी। 1968 से पहले इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) ही भारत की वाह्य खुफिया जानकारी जुटाती थी। लेकिन 1962 में सीमा पर चीन से मिली पराजय के बाद अलग इंटेलिजेंस एजेंसी बनाने की जरूरत महसूस हुई थी।

चीन के खिलाफ इंटेलिजेंस फेल…
रिटायर्ड सैन्य अधिकारी वीके सिंह ने 2007 में अपनी किताब India’s External Intelligence में लिखा था, ‘1962 की लड़ाई में हमारी इंटेलिजेंस हमले के लिए चीन की तैयारी का अनुमान लगाने में विफल रही थी।’ भारत के लिए अलग से वाह्य खुफिया एजेंसी बनाने का मकसद ही चीन और पाकिस्तान की हरकतों पर नजर रखना था। हालांकि वक्त के साथ भारतीय एजेंसी ने दुनिया में अपना प्रभाव बढ़ाया है। RAW को कई सफल अभियानों का श्रेय दिया जाता है। इसमें 1971 में बांग्लादेश का जन्म, अफगानिस्तान में भारत का बढ़ता प्रभाव, 1975 में सिक्किम का भारत में विलय, भारत के परमाणु कार्यक्रम की सुरक्षा आदि शामिल हैं।

जब पाक आर्मी में मेजर बना भारतीय जासूस
जब कभी भारत के बड़े जासूसों का जिक्र होगा, 23 साल के रविंद्र कौशिक का नाम सबसे आगे लिया जाएगा। वह पाकिस्तान की सेना में अफसर तक बन गए थे। उन्हें मेजर रैंक पर प्रमोशन मिला था। उन्होंने पाकिस्तानी लड़की से शादी की और एक बेटी के पिता भी बने। 1979 से 1983 तक उन्होंने कई अहम जानकारियां भारत भेजी थीं। उनकी खुफिया सूचनाओं के कारण उन्हें ब्लैक टाइगर कहा जाता है। बताते हैं कि यह नाम खुद इंदिरा गांधी ने दिया था। हालांकि वह पकड़े गए और आजीवन कैद की सजा मिली। 2001 में उन्होंने मुलतान जेल में दम तोड़ दिया लेकिन कभी मुंह नहीं खोला।

चीन लगातार कर रहा जासूसी
अमेरिका की Federation of American Scientists ने साल 2000 में दावा किया था कि RAW के पास 8 से 10 हजार एजेंट हैं। खैर, यह जिक्र ऐसे समय में करने की जरूरत पड़ रही है जब चीन बॉर्डर के उस पार अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है। हाल के वर्षों में उसके सैनिक कई बार भारतीय जवानों से भिड़े हैं। तवांग में झड़प के बीच एक और टेंशन देने वाली खबर आई है कि कुछ दिन पहले चीन का जासूसी जहाज यांग वांग-5 हिंद महासागर में दाखिल हुआ था। कुछ महीने पहले एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीन भारतीयों के वॉइस सैंपल इकट्ठा कर रहा है। सवाल खड़े होने लगे कि क्या यह जासूसी की नई टेक्निक है।

अमेरिकी थिंक टैंक New Kite Data Labs की मानें तो चीन भारतीय नागरिकों के आवाज के नमूने जुटा रहा है, जिसका उद्देश्य साफ नहीं है। रिपोर्ट का दावा है कि चीनी एजेंट बॉर्डर क्षेत्रों में रहने वाले भारतीयों की आवाज के नमूने कलेक्ट कर रहे हैं। इसमें मिलिट्री सेंसिटिव रीजन जैसे जम्मू-कश्मीर और पंजाब का जिक्र किया गया है। चीन की ढेरों मोबाइल कंपनियां है, अक्सर उनके जरिए जासूसी की बातें भी कही जाती हैं।

अमेरिकी खुफिया एजेंसियां तो आज भी चीनी-अमेरिकी नागरिकों को संदेह की नजर से देखती हैं। दावा किया जाता है कि उनके फोन कॉल और ईमेल की निगरानी भी की जाती है। भारत और पाकिस्तान के मामले में देखें तो बातचीत, रहन-सहन, पहनावा एक जैसा होने के कारण एजेंट का एक दूसरे देश में दाखिल होकर छिपे रहना आसान होता है। एक्सपर्ट की मानें तो चीन के खिलाफ भी अब उसी ‘मुखबिर’ टेक्निक को अपनाने का वक्त आ गया है।

चीन और भारत की प्राथमिकताएं
पहले ऐसा माना जाता था कि चीन के खुफिया नेटवर्क के निशाने पर ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग से संबंधित आंतरिक खतरे और उसके बाद अमेरिका और जापान रहे हैं। चीन की प्रमुख खुफिया एजेंसी Guoanbu का दुनियाभर में बड़ा नेटवर्क है। इधर, भारत की डिफेंस पॉलिसी में पाकिस्तान और आंतरिक आतंकी खतरे के बाद चीन पर फोकस करने की नीति अपनाई जाती रही है। हालांकि सच्चाई यह है कि भारत और चीन दोनों ही जासूसी में एक दूसरे के खिलाफ मजबूत स्थिति में नहीं कहे जा सकते। 4000 किमी लंबी सीमा के उस पार मूवमेंट पर नजर रखना आसान नहीं है।

खतरे और भी हैं
भारत और नेपाल के बीच बॉर्डर खुले हैं। कई बार यहां चीनी नागरिक पकड़े भी गए हैं। इधर से जासूसों के घुसने की आशंका बनी रहती है। LAC पर रक्षा तैयारियों को बढ़ाने के साथ ही भारत को अब चीन के खिलाफ इंटेलिजेंस को मजबूत करने पर ध्यान देना होगा। भारत में बड़ी संख्या में निर्वासित तिब्बती समुदाय रहता है। वे आसानी से चीन में जाकर घुलमिल सकते हैं। चीन नेपाल, श्रीलंका के रास्ते भारत की निगरानी करने की कोशिश करता रहता है तो भारत तिब्बतियों की मदद से अपने लिए जासूसी अजेंडे को आगे क्यों नहीं बढ़ा सकता?

मीडिया रिपोर्ट की मानें तो मॉरीशस में चीनी टेलिकॉम कंपनी Huawei का नेटवर्क स्थापित होने से भारत के तटीय इलाकों के कम्युनिकेशन इंटरसेप्ट का खतरा पैदा हो गया है। पहले से यह कंपनी दुनिया में बदनाम रही है। इस पर चीनी सरकार के लिए जासूसी करने के आरोप लगते रहे हैं। इंस्टेंट लोन एप में भी चीन का हाथ देखा गया है। इस तरह से देखें तो चीन के खिलाफ पुख्ता इंटेलिजेंस की जरूरत महसूस होती है। खुफिया इनपुट मिले तो गलवान पार्ट-3 को समय रहते रोका जा सकेगा।