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वैशाली: एक तरह जहां पूरा देश होली के रंग में सराबोर है तो वहीं दूसरी तरफ बिहार के सरकारी कर्मी खासकर शिक्षकों का होली का रंग फीका हो गया है. इसकी वजह है शिक्षा विभाग का एक ऐसा आदेश जिसका विरोध तो नेता से लेकर शिक्षक संघ तक ने किया लेकिन शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के सामने सब कुछ बेअसर हो गया. नतीजा ये हुआ कि शिक्षकों को होली के दिन भी विद्यालय आना पड़ा.
यह अलग बात है कि बच्चे विद्यालय में नहीं पहुंचे लेकिन जो शिक्षक विद्यालय पहुंचे वह किस हाल में यह रहे इसकी बानगी बिहार के अलग-अलग जिलों से देखने को मिली. बात वैशाली जिला की करें तो जिले के पटेढ़ी बेलसर पंचायत से एक तस्वीर अपने आप में देखने लायकी थी. इस तस्वीर में शिक्षक की पीड़ा दिख रही थी. दरअसल स्कूल पहुंचने वाले शिक्षकों ने विद्यालय तक पहुंचने के लिए अपनी बाइक पर पोस्टर तक लगा रखा था.
टीचर्स की बाइक पर सटे इन पोस्टर्स पर लिखा था कि वह स्कूल जा रहे हैं, कृपया कीचड़ कादो नहीं फेंकें. एक विद्यालय की शिक्षिका होली के दिन विद्यालय में भुजा खाती नजर आई तो वहीं कुछ विद्यालय में तो शिक्षकं ने केके पाठक और शिक्षा विभाग के आदेश को दरकिनार कर दिया और स्कूल तक नहीं गए और विद्यालय का ताला तक नही खुला. पटेढ़ी बेलसर प्रखंड के ही मनोरा स्थित विद्यालय में ना तो शिक्षक पहुंचे और ना ही बच्चे.
मुजफ्फरपुर में स्कूल पहुंची शिक्षिकाओं ने कहा कि रास्ते में कोई रंग-गुलाल न फेंक दे इसके लिए काफी दिमाग लगाना पड़ा. शिक्षिकाएं स्कूल में रेनकोट पहनकर पहुंची. बिहार के ही कुछ जिलों में स्कूल पहुंचने वाले शिक्षकों को रंग-गुलाल में सराबोर होकर भी स्कूल पहुंचना पड़ा.
बात दरभंगा की करें तो होली के दिन भी शिक्षा विभाग के आदेश के अनुसार दरभंगा के किला घाट स्थित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षण करवाया जा रहा है. होली पर्व के बावजूद 300 शिक्षक प्रशिक्षण को पहुंचे जहां आज से 6 दिनों तक उनको रह कर प्रशिक्षण लेना होगा. प्राचार्य ने भी कहा कि होली पर्व के बावजूद शिक्षक समय से पहुंचकर प्रशिक्षण ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि होली पर्व होने के वावजूद उन्हें आना पड़ा, थोड़ा विरोध के स्वर तो हैं लेकिन शिक्षा के स्तर को बेहतर करने के जरूरी है वो काम शिक्षक कर रहे हैं.
महिला शिक्षक के पति जो पत्नी को ट्रेनिंग सेंटर पहुंचाने आये थे शिक्षा विभाग के आदेश से नाखुश दिखे. उन्होंने कहा कि होली पर्व तो बेकार हो गया वहीं महिला को लेकर आना काफी कठिन था. रास्ते भर कीचड़ और रंग को झेलते हुए आये हैं जो आदेश था, उसको पूरा करना मजबूरी था.