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जयपुर. राजधानी जयपुर में सात साल बाद फिर से एशियाटिक शेरों के दो जोड़े तैयार कर शेरों के प्रजनन के प्रयास किये जा रहे हैं. दुनियाभर में शेरों की ये उप प्रजाति सिर्फ गुजरात में ही बची है, जिसे एशियाटिक या पर्शियन लॉयन भी कहा जाता है. इसके प्रजनन के अगर राजस्थान के प्रयास कामयाब रहे तो आने वाले वक्त में गुजरात की तरह प्रदेश के जंगलों में इनकी रिवाइल्डिंग भी संभव है.
राजस्थान में जंगली माहौल सन 1872 में लुप्त हो चुकी एशियाटिक लायन को बचाने के लिए जयपुर के नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क ने इन शेरों के प्रजनन की कोशिशें फिर से शुरू कर दी हैं. जयपुर में 30 साल के अथक प्रयास के बाद अंतिम बार सन साल 2016 में शेरों को सफल प्रजनन हुआ था और तीन शावक पैदा हुए थे. तब से लेकर अब तक नाहरगढ़ में शेरों के ग्रह-नक्षत्र कुछ ठीक नहीं रहे है. कभी शेरों के बनाये गए जोड़े में से शेर की मौत हो गई तो कभी शेरनी ने ही इस दुनिया को अलविदा कह गई. पिछले छह साल के दौरान जयपुर में सिद्धार्थ, तेजिका, सुजैन, तेजस, कैलाश जैसे पांच शेरों की मौत हो चुकी है, लेकिन जयपुर के नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क से हिम्मत नहीं हारी कई बार ऑफर ठुकराने के बाद भी गुजरात से एशियाटिक शेरनी सृष्टि लाई और उसका जोड़ा यहां 2016 में जन्मे शेर त्रिपुर के साथ बनाया है.
जोधपुर जू से लाया गया शेर
नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क के वरिष्ठ पशु चिकित्सक अरविंद माथुर ने बताया कि त्रिपुर की बहन तारा का जोड़ा एशियाटिक लायन जीएस के साथ बनाया गया है, जिसे जोधपुर जू से जयपुर लोन पर लाया गया है. पिछले एक सप्ताह से अप्रैल के इस महीने में शेर शेरनी को साथ गहन निगरानी में रखा हुआ है. इन्हें बेहतर प्रजनन के लिए खास डाइट भी दी जा रही है. गहन निगरानी में इसलिए भी रखा गया है ताकि इनका प्रजनन सफल हो और यहां फिर शेरों के शावकों की अठखेलियां देखने को मिल सकें.