न कर्मचारियों को सैलरी, न रिटायरों को पेंशन, जानें कैसे खडी हुई ये मुसीबत, मोदी सरकार पर…

Neither salary to employees, nor pension to retirees, know how this problem arose, blame on Modi government...
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नई दिल्‍ली: केरल का आर्थिक संकट गहरा गया है। अपनी तरह के पहले मामले में उसने केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में घसीटा है। चीजें बद से बदतर होती जा रही हैं। राज्‍य ने हाल में 5.15 लाख कर्मचारियों में से आधे से ज्‍यादा को सैलरी का पेमेंट करने में हाथ खड़े कर दिए। रिटायर हो चुके कर्मचारियों को पेंशन के भुगतान में भी देरी की। एक समय तो ऐसा आ गया था कि पुलिस वाहनों को भी पेट्रोल पंपों से भगा दिया गया। कारण था कि बकाये का भुगतान नहीं किया गया था। यह सबकुछ हालात की गंभीरता बताने के लिए काफी है। राज्य अपनी मौजूदा स्थिति का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ रहा है। ऐसे में सवाल उठता है क‍ि क्‍या वाकई मोदी सरकार इसके लिए जिम्‍मेदार है? आइए, यहां इसे समझने की कोशिश करते हैं।

केरल के बारे में कोई निष्‍कर्ष निकालने से पहले कुछ बातें जान लेने की जरूरत है। उनमें से सबसे पहली यह है कि इसे कुछ एक्‍सपर्ट रेवेन्‍यू डेफिसिट यानी राजस्व घाटे वाला राज्य कहते हैं। राज्यों को कई स्रोतों से कमाई होती है। इनमें शराब जैसी चीजों पर एक्‍साइज ड्यूटी, वाहनों, संपत्ति और बिजली टैक्‍स शामिल हैं। स्‍टेट जीएसटी के तौर पर भी उसे कमाई होती है। इसके अलावा उसे केंद्र से भी पैसा मिलता है। यह सबकुछ मिलाकर किसी राज्‍य के खजाने का हिस्‍सा बनते हैं।

केरल से कहां हुआ म‍िस-मैनेजमेंट?
राज्य इस राजस्व का इस्‍तेमाल सबसे पहले अपने कमिटेड एक्‍सपेंस को पूरा करने के लिए करते हैं। इनमें वेतन, पेंशन, कल्याणकारी स्‍कीमें और ब्याज भुगतान शामिल हैं। यह सबकुछ रेवेन्‍यू एक्‍सपेंस यानी राजस्व व्यय का हिस्सा बनता है। यह कमिटेड एक्‍सपेंस रखरखाव खर्च की तरह है। इससे कोई एसेट नहीं बनाता है।

राज्यों को इस प्रकार के खर्च को न्यूनतम रखने में अच्‍छा लगता है। ऐसा करके उन्हें सड़कों जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण में निवेश के लिए उधार लेने की जरूरत नहीं होती है। इसका लंबी अवधि में बेहतरीन असर दिखाई देता है। लेकिन, समस्या यह है कि केरल का कमिटेड एक्‍सपेंस आम तौर पर हमेशा ऊंचे स्तर पर रहा है । अन्य राज्यों की तुलना में यह उसकी राजस्व प्राप्तियों का 71% है। इस मामले में राज्‍यों का औसत 60% से कम है। ऐसे में केरल के पास उन बुनियादी परियोजनाओं में निवेश की बहुत अधिक गुंजाइश नहीं है जिनसे ज्‍यादा नौकरियां और रेवेन्‍यू जेनरेट किया जा सके।

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि केरल ने पिछले कुछ सालों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे सामाजिक क्षेत्रों में भारी निवेश किया है। इससे राज्य पर नकदी का दबाव बढ़ गया है। सामाजिक क्षेत्र में भारी खर्च भी कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन, अगर आप पैसा खर्च करना चाहते हैं तो आपको ज्‍यादा पैसा कमाने का तरीका भी खोजना होगा। यहीं केरल ने संघर्ष किया है। जहां राज्य की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारतीय औसत से 1.6 गुना ज्‍यादा है। वहीं, टैक्‍स-टू-जीपीडी रेशियो देश के बाकी हिस्सों के कमोबेश बराबर है। इसका सीधा सा मतलब यही है कि वह टैक्‍स से राजस्व का अधिक हिस्सा हासिल करने में कामयाब नहीं रहा है। नतीजा यह है राज्य वर्षों से वित्तीय संकट में है।

केंद्र सरकार को दोष क्‍यों दे रहा है राज्‍य?
फिर सवाल यह उठता है कि केरल ने केंद्र को दोषी क्यों ठहराया? केंद्र सरकार को उसने सुप्रीम कोर्ट में क्यों घसीटा? दरअसल, केरल का आरोप है कि केंद्र सरकार के नए नियमों ने उसकी परेशानियों को और भी बढ़ा दिया है।

विवाद की जड़ में केंद्र सरकार का नेट बॉरोइंग सीलिंग (एनबीसी) नियम है। इसे इस तरह लें कि राज्य सरकार को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कितना पैसा उधार लेने की मंजूरी हो। कैलकुलेशन के हिसाब से यह राज्य की जीडीपी का 3% है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए केरल का एनबीसी 32,400 करोड़ रुपये से थोड़ा ज्‍यादा आंका गया था।

हालांकि, यहां पेच है। केरल में राज्य स्वामित्व वाला एक उद्यम है। इसे केरल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) कहा जाता है। यह इकाई राज्य में बुनियादी ढांचे को पैसा मुहैया कराती है। अब तक इसके कर्ज को राज्य की उधार सीमा के अंतर्गत नहीं माना जाता था। इसलिए केरल एनबीसी के दायरे से बाहर अपनी बुनियादी जरूरतों को स्वतंत्र रूप से फाइनेंस कर सकता था। इसे ऑफ-बजट बॉरोइंग कहा जाता था।

हालांकि, वित्त आयोग ने 2021 में लूपहोल यानी खामी को बंद कर दिया। इससे केरल की समस्याएं कई गुना बढ़ गईं। अचानक KIIFB का सारा कर्ज राज्य की उधारी में भी शामिल हो गया। केरल ने पाया कि उसका एनबीसी जितना दिखाई देता था उससे कहीं ज्यादा करीब था। इसके चलते केरल के उधारी के रास्ते बंद हो गए। जब उसने केंद्र सरकार से मदद मांगी तो उसे उलटे दरवाजे लौटा दिया गया। अब केरल का कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 293 का उल्लंघन है। यह कहता है कि किसी राज्य का सार्वजनिक कर्ज उसका अपना मामला है। इसमें ऐसा कुछ नहीं है जिस पर संसद का नियंत्रण होना चाहिए। इसलिए वह मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गया।