गरीब महिला को 1 लाख रुपये सालाना… कांग्रेस के वादे से सरकारी खजाने पर कितना बोझ बढ़ेगा?

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One Woman One Lakh Yearly: लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी ने महिला सशक्तिकरण के लिए पांच बड़े वादे किए हैं. इसे 2019 के चुनावी घोषणापत्र का नया वर्जन माना जा सकता है. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने न्यूनतम आय योजना (NYAY) का वादा किया था. इसके तहत देशभर में करीब 20 प्रतिशत गरीब परिवारों को सालाना 72 हजार रुपये कैश मदद दी जानी थी. करीब 5 करोड़ परिवार इसके दायरे में आ सकते थे. पार्टी ने तब यह भी कहा था कि पैसा परिवार की महिला सदस्य के खातों में भेजा जाएगा. इस बार कांग्रेस की पांच घोषणाओं में सबसे प्रमुख है ‘महालक्ष्मी योजना’. इसके तहत हर गरीब परिवार की महिला सदस्य को एक लाख रुपये हर साल देने का वादा किया गया है. इसका सरकारी खजाने पर कितना बड़ा प्रभाव पड़ेगा?

वैसे कांग्रेस ने यह नहीं बताया है कि 1 लाख हर साल वाली स्कीम में कितने गरीब परिवारों को टारगेट किया जाएगा. यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत की गरीबी के अनुमान अलग-अलग पद्धतियों के आधार पर काफी भिन्न हैं. जैसे नीति आयोग का बहुआयामी गरीबी सूचकांक गरीबी अनुपात को लगभग 11% पर रखता है जबकि इसके सीईओ ने दावा किया है कि अगर पिछले महीने जारी उपभोग खर्च सर्वे के नए आंकड़ों को ध्यान में रखे तो गरीबी 5% तक कम हो सकती है. विश्व बैंक ने 2022-23 में भारत का गरीबी अनुपात 11.3% आंका है जो 48 रुपये रोज पर गुजर बसर करने लोगों की अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा पर आधारित है.

कांग्रेस का ‘महालक्ष्मी’ वादा

कुछ देर के लिए अगर मान लिया जाए कि कांग्रेस चालू वित्त वर्ष में इसे लागू करने जा रही है तो महालक्ष्मी वादे से सरकार पर कितना बोझ बढ़ेगा? अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि अगर कोई 10% गरीबी अनुपात मानता है तो इसका मतलब होगा कि टारगेट लाभार्थी 14 करोड़ परिवार होंगे. इसमें जनसंख्या 140 करोड़ मानी जा रही है. अगर हर गरीब परिवार से एक महिला को टारगेट किया जाता है तो 2.8 करोड़ महिलाएं होंगी. इस लिहाज से कुल खर्च 2.8 लाख करोड़ रुपये होगा. यह 2024-25 में (फरवरी में पेश केंद्रीय बजट के अनुसार) भारत की जीडीपी (328 लाख करोड़ रुपये) का 0.8% है. जैसा नीति आयोग का दावा है अगर गरीबी अनुपात 5% है तो खर्च जीडीपी का 0.4% रह जाएगा.

वित्तीय बोझ का अनुमान लगाने का दूसरा तरीका सबसे गरीब परिवारों को टारगेट करना है, जिनके पास अंत्योदय राशन कार्ड है. इससे लाभार्थियों की कुल संख्या थोड़ी कम होगी. मौजूदा समय में अंत्योदय अन्न योजना के तहत 2.33 करोड़ परिवार हैं. हर महिला को 1 लाख रुपये मिलते हैं तो कुल सालाना खर्च 2.33 लाख करोड़ रुपये होगा. यह भारत की जीडीपी का 0.7% है.

महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियां

हां, दूसरा बड़ा वादा कांग्रेस ने यही किया है. इसके तहत केंद्र सरकार की नई नियुक्तियों में आधा हक महिलाओं को मिलेगा. सभी सरकारी रिक्तियों में से आधे को महिलाओं के लिए आरक्षित करने से कोई अतिरिक्त वित्तीय बोझ नहीं होगा क्योंकि ये पहले से ही मौजूदा रिक्तियां हैं.

तीसरा वादा

तीसरा वादा यह है कि आशा, आंगनवाड़ी और मिड-डे मील तैयार करने वाली महिलाओं के मासिक वेतन में केंद्र सरकार के योगदान को दोगुना किया जाएगा. अर्थशास्त्री दीपा सिन्हा ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि इसका वित्तीय प्रभाव कम पड़ेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि वेतन का स्तर काफी कम है. पिछले साल मार्च तक 10.5 लाख आशा कार्यकर्ता, 12.7 लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और 25 लाख से अधिक रसोइये थे. सिन्हा ने कहा कि इन तीनों समूहों को करीब 2,000 रुपये, 4500 रुपये और 1,000 रुपये का मासिक वेतन मिलता है. उदाहरण के लिए 2021-22 में, केंद्र ने सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के वेतन पर 8,908 करोड़ रुपये खर्च किए और वे तीनों में से सबसे अधिक वेतन कमाते हैं. इन राशियों को दोगुना करना यानी कुल 54,000 करोड़ रुपये होकर भी यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (328 लाख करोड़) का काफी कम प्रतिशत है.

चौथा वादा

कांग्रेस ने कहा है कि हर पंचायत में महिलाओं को उनके हकों के लिए जागरूक करने और जरूरी मदद के लिए अधिकार मैत्री के रूप में एक Para-Legal यानी कानूनी सहायक की नियुक्ति की जाएगी. इस वादे के सटीक वित्तीय बोझ का अनुमान लगाना मुश्किल है. ऐसा इसलिए क्योंकि पारिश्रमिक के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है.

आखिर में हर जिले में कामकाजी महिलाओं के छात्रावासों के निर्माण की लागत का अनुमान लगाना भी मुश्किल है. मेहरोत्रा ने कहा कि ये छात्रावास ‘फ्री’ नहीं हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो ऑपरेटिंग कॉस्ट कामकाजी महिलाएं खुद उठा सकती हैं. जहां तक निर्माण की लागत का सवाल है तो यह इस पर निर्भर करता है कि ये छात्रावास कितने बड़े हैं.