ललन सिंह के मीट-भात महाभोज से बिहार में बीजेपी का हाजमा क्यों खराब है?

Why is the BJP's digestion in Bihar upset due to Lalan Singh's meat-rice feast?
Why is the BJP's digestion in Bihar upset due to Lalan Singh's meat-rice feast?
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पटना: बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के बीच राजनीति अब मीट-भात और कुत्ते के मांस तक पहुंच गई है। मुंगेर लोकसभा सीट से दूसरी बार सांसद बने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने दो महीने में अपनी लोकसभा क्षेत्र में दूसरी बार मीट-भात का महाभोज देकर बिहार में बीजेपी का हाजमा खराब कर दिया है। वजह है कि पहले लखीसराय और अब मुंगेर के भोज में सिर्फ आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस, लेफ्ट महागठबंधन के कार्यकर्ता नहीं पहुंचे, बल्कि बीजेपी, लोजपा के भी कई स्थानीय नेता और कार्यकर्ता महाभोज का हिस्सा बन गए।

जेडीयू की मीट-भात पार्टी में जुट रही भीड़ से हैरान-परेशान बीजेपी नेता हलाल या झटका से लेकर कुत्तों के गायब होने तक का सवाल उठा रहे हैं। बीजेपी नेताओं में ललन सिंह के महाभोज से सबसे ज्यादा बेचैन इस समय विधानसभा में नेता विपक्ष विजय सिन्हा दिखते हैं जो लखीसराय सीट से लगातार तीसरी बार विधायक बने हैं। माना जाता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में विजय सिन्हा बीजेपी के टिकट पर मुंगेर से लड़ने का मन बनाए हुए हैं। ललन सिंह मुंगेर छोड़कर कहीं और नहीं जा रहे इसलिए विजय सिन्हा का सबसे प्राइम टार्गेट ललन सिंह बने हुए हैं। यही वजह रही है कि 14 मई को मुंगेर के पोलो मैदान में जब ललन सिंह ने अपने संसदीय क्षेत्र की दूसरी मीट-भात पार्टी दी और उसमें 30-35 हजार लोग पहुंच गए तो विजय सिन्हा परेशान हो गए। इससे पहले 2 अप्रैल को ललन सिंह ने विजय सिन्हा के विधानसभा क्षेत्र लखीसराय के केआरके मैदान में ही महाभोज दिया था और उसमें भी 20 हजार लोग आए थे।

ललन सिंह के लखीसराय महाभोज में बीजेपी और लोजपा के भी कई कार्यकर्ता शामिल हुए थे जिसकी खूब चर्चा हुई। दो महीने में दो जिलों में भोज के ट्रेंड से लगता है कि आगे किसी महीने एक रविवार को ललन सिंह पटना जिला में महागठबंधन के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को महाभोज चखा देंगे क्योंकि मुंगेर लोकसभा के अंदर दो विधानसभा सीटें मोकामा और बाढ़ पटना जिले के तहत आती हैं। विजय सिन्हा की बेचैनी का आलम ये है कि उन्होंने मुंगेर में हजारों कुत्तों के गायब होने का आरोप लगाते हुए इस तरह से बातें रखीं जिसका मतलब ये रहा कि ललन सिंह के भोज में क्या कुत्ते का मांस खिलाया गया है। विजय सिन्हा कह रहे हैं कि इसकी जांच होनी चाहिए। विजय सिन्हा ने यह आरोप भी लगाया है कि ठेकेदारों से वसूली के पैसे से महाभोज आयोजित की गई है।

बिहार बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद रविवार से ही झटका और हलाल मटन का सवाल उठा रहे हैं और पूछ रहे हैं कि ललन सिंह ने असल में किसका धर्म भ्रष्ट किया। बताते चलें कि मुसलमान सिर्फ हलाल मीट खाते हैं। निखिल आनंद तो यह भी आरोप लगा रहे हैं कि सरकार के संरक्षण में मुंगेर की पार्टी में शराब पिलाई गई जबकि बिहार में शराबबंदी है। बीजेपी आयोजन पर हुए खर्च और उस पैसे का भी हिसाब मांग रही है कि किसने ये पैसा दिया।

ललन सिंह मीट-भात खिला रहे हैं तो विजय सिन्हा के पेट में क्यों उठ रहा है दर्द?

असल में 2009 के परिसीमन के बाद मुंगेर लोकसभा सीट भूमिहार बहुल सीट बन गई है। इससे पहले इस सीट से ज्यादातर यादव नेता जीत रहे थे। यह वही सीट है जिससे एक समय समाजवादी दिग्गज मधुलिमये जीतकर संसद पहुंचे थे।परिसीमन से पहले मुंगेर लोकसभा सीट के अंदर मुंगेर, जमालपुर, तारापुर, हवेली खड़गपुर, जमुई और बरहट कुल 6 विधानसभा क्षेत्र आते थे। तब यह सीट ओबीसी नेताओं के लिए मुफीद सीट थी। परिसीमन के बाद मुंगेर लोकसभा के तहत अब मुंगेर, जमालपुर, लखीसराय, सूर्यगढ़ा, मोकामा और बाढ़ विधानसभा क्षेत्र आ गए हैं जिसके बाद सीट भूमिहारों के लिए सेफ हो गई है।

ललन सिंह 2014 में मोदी लहर में हारे, मुंगेर लड़ने को अब सूरजभान परिवार तैयार नहीं

परिसीमन के बाद पहले लोकसभा चुनाव 2009 में ललन सिंह ही मुंगेर से जीते। 2014 में बाहुबली लोजपा नेता सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी ने ललन सिंह को मोदी लहर में हरा दिया। सूरजभान मुंगेर लोकसभा के अंदर आने वाले मोकामा के ही रहने वाले हैं और इसी सीट से पहली बार जेल में रहते निर्दलीय विधायक बने थे। 2019 में ललन सिंह फिर मुंगेर सीट से जीते। मुंगेर से पहले भी ललन सिंह बेगूसराय लोकसभा सीट से एक बार 2004 में जीते थे जो बिहार की एक और भूमिहार बहुल सीट है। लखीसराय उस समय बेगूसराय लोकसभा सीट का हिस्सा था। जब ललन सिंह 2004 में बेगूसराय के सांसद थे तो सूरजभान बेगूसराय जिले की ही दूसरी लोकसभा सीट बलिया के सांसद थे। अब सूरजभान सिंह साफ कह चुके हैं कि उनके परिवार से कोई मुंगेर से नहीं लड़ेगा, नवादा ही लड़ेगा जहां से उनके भाई चंदन सिंह 2019 का चुनाव जीते हैं।

ललन सिंह इस समय जेडीयू ही नहीं बिहार की सत्ता संरचना में बहुत ताकतवर नेता हैं। इसलिए मुंगेर सीट से चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी की सहयोगी दल लोजपा का कोई भूमिहार नेता तैयार नहीं है। लोजपा वालों के पीछे हटने के बाद मुंगेर सीट बीजेपी को खुद लड़ना होगा, यह तय दिख रहा है। बीजेपी में विजय सिन्हा इसी लोकसभा क्षेत्र के अंदर लगातार तीन बार जीते विधायक हैं और पार्टी ने उनको विपक्ष का नेता बनाकर उनके प्रोफाइल में वजन भी खूब डाला है।

मुंगेर लोकसभा सीट पर ललन सिंह से टकराना बीजेपी के लिए आसान नहीं

अब मुंगेर लोकसभा सीट के वोट समीकरण को समझिए तो पता चलेगा कि बीजेपी परेशान क्यों है। 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू साथ थी तब ललन सिंह जीते और उनको 57 परसेंट वोट मिला था। 2014 में जेडीयू अलग लड़ी, बीजेपी के समर्थन से मुंगेर से लोजपा की वीणा देवी लड़ीं और आरजेडी भी अलग लड़ी। तब ललन सिंह को 27 परसेंट, वीणा देवी को 37 परसेंट और राजद के प्रगति मेहता को 20 परसेंट वोट मिला था।

2019 में बीजेपी और जेडीयू साथ थी तो ललन सिंह फिर जीते और 51 परसेंट वोट मिला। दूसरे नंबर पर बाहुबली अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी रहीं जिन्हें कांग्रेस ने लड़ाया था। नीलम देवी को 35 परसेंट वोट मिला जिन्हें आरजेडी का समर्थन था। साधारण अंकगणित से ललन सिंह को अगर जेडीयू का टिकट और आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट का समर्थन हो तो उन्हें 50 परसेंट से अधिक वोट मिलता दिखता है। ललन सिंह का भूमिहार समाज में अपना आधार भी है जो उन्हें पार्टी लाइन से ऊपर उठकर वोट देता रहा है। बीजेपी और बीजेपी के संभावित कैंडिडेट विजय सिन्हा को ललन सिंह की भूमिहारों में ये पैठ परेशान कर रही है।

विजय सिन्हा को बीजेपी ने विपक्ष का नेता भूमिहारों को खुश करने के लिए ही बनाया है। यही विजय सिन्हा के लिए अब चुनौती बन गई है। पार्टी विजय सिन्हा को भूमिहार बहुल लोकसभा सीट मुंगेर से लड़ने कह देगी जहां उन्हें महागठबंधन की जातीय गोलबंदी के साथ-साथ भूमिहार समाज में ललन सिंह की स्वीकार्यता से टकराना होगा। और इस तकरार में बीजेपी और नरेंद्र मोदी के अलावा कोई ऐसा फैक्टर नहीं होगा जो विजय सिन्हा को मदद करे और ललन सिंह से आगे निकलने की ताकत दे।मीट-भात ललन सिंह खिला रहे हैं और पेट में दर्द विजय सिन्हा को हो रहा है, हाजमा बीजेपी का खराब हो रहा है तो उसकी एकमात्र वजह 2024 का लोकसभा चुनाव है।